🧾 पूरा केस विश्लेषण
1. पक्षकार
- अपीलकर्ता (Accused/Appellant): जगदीश गोंड (पति)
- प्रतिवादी (Respondent): राज्य छत्तीसगढ़
2. घटना (Facts of the Case)
- मृतका: जगदीश गोंड की पत्नी, विवाह को लगभग 2 वर्ष हुए थे।
- मौत: पत्नी घर में मृत पाई गई।
- गर्दन पर लिगेचर मार्क (गाँठ/रस्सी का निशान)
- मृत्यु का कारण: फांसी (asphyxia due to hanging)
- प्रारंभिक कार्यवाही: धारा 174 CrPC के तहत “असामान्य/अचानक मौत” का मामला दर्ज हुआ।
- बाद में FIR: मृतका के पिता ने शिकायत दी → आरोप लगाया कि पति और ससुराल वालों ने हत्या की है।
3. आरोप (Charges)
- धारा 302 IPC – हत्या
- धारा 498A IPC – क्रूरता / उत्पीड़न
- धारा 306 IPC – आत्महत्या के लिए उकसाना
- धारा 34 IPC – समान आशय (Common Intention)
4. ट्रायल कोर्ट का फैसला
- सभी आरोपी बरी (Acquitted)
कारण:
- अभियोजन यह साबित नहीं कर पाया कि यह आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या है।
- मेडिकल रिपोर्ट आत्महत्या से मेल खाती है।
- गवाहों के बयान में विरोधाभास।
5. हाई कोर्ट का फैसला
- ट्रायल कोर्ट का फैसला पलटा।
- पति जगदीश गोंड को दोषी ठहराया धारा 302 IPC के तहत → आजीवन कारावास।
तर्क:
- घटना पति-पत्नी के घर में हुई।
- पति ने अलिबी (काम पर होने का दावा) दिया लेकिन उसे विश्वसनीय नहीं माना गया।
- Section 106 Evidence Act लागू किया गया → "जब घटना घर के अंदर हुई तो पति को बताना चाहिए कि पत्नी की मृत्यु कैसे हुई।"
6. सुप्रीम कोर्ट का फैसला
- हाई कोर्ट का फैसला रद्द किया गया।
- अपीलकर्ता जगदीश गोंड बरी (Acquitted)।
7. सुप्रीम कोर्ट के तर्क (Reasoning)
- अभियोजन का असफल होना
- अभियोजन हत्या साबित नहीं कर पाया।
- केवल यह तथ्य कि मौत घर के अंदर हुई, पर्याप्त नहीं है।
अलीबी (Alibi)
- पति ने शुरू से ही कहा कि वह घटना के समय काम पर था।
- यह दावा गवाहों और FIR में भी परिलक्षित था।
- अभियोजन इसे झूठा साबित नहीं कर सका।
- Section 106 Evidence Act का गलत प्रयोग
- Section 106 तभी लागू होता है जब अभियोजन पहले से एक ठोस केस बना ले।
- यहाँ अभियोजन हत्या साबित ही नहीं कर पाया था, इसलिए केवल "पति को बताना चाहिए था" कहकर दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
परिस्थितिजन्य साक्ष्य (Circumstantial Evidence)
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हत्या के मामलों में "chain of circumstances" पूरी तरह से जुड़नी चाहिए।
- यहाँ श्रृंखला अधूरी थी → कई शक की गुंजाइशें बचीं।
- शक (Suspicion) = सबूत नहीं
- कोर्ट ने दोहराया: "सिर्फ शक के आधार पर सज़ा नहीं दी जा सकती।"
- अभियोजन को दोष सिद्ध करना अनिवार्य है।
8. महत्व (Significance of the Judgment)
बरी करने के सिद्धांत को मज़बूत किया:
- अगर ट्रायल कोर्ट ने बरी किया है, तो अपीलीय न्यायालय (High Court/Supreme Court) को उसे पलटने के लिए बहुत ठोस और स्पष्ट कारण देने होंगे।
अलीबी की अहमियत:
- अगर आरोपी अलिबी पेश करता है और अभियोजन उसे खंडित नहीं कर पाता, तो आरोपी को इसका लाभ मिलेगा।
Section 106 Evidence Act की सीमाएँ:
- यह धारा अभियोजन की जिम्मेदारी को आरोपी पर शिफ्ट नहीं करती। पहले अभियोजन को अपराध साबित करना ही होगा।
परिस्थितिजन्य साक्ष्य के मानक:
- हत्या के मामलों में परिस्थितिजन्य साक्ष्य तभी मान्य होगा जब पूरी श्रृंखला बिना किसी संदेह के आरोपी की दोषिता की ओर ही ले जाए।
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