कोर्ट सम्मन क्या है और इसकी तामील कैसे करवाई जाती है? | What is summons and how is it served |

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अगर कोर्ट से समन आ जाए तो आमतौर पर लोग घबरा जाते हैं, भले उसमें बतौर गवाह पेश होने का निर्देश ही क्यों न हो! कई बार तो लोग समन रिसीव ही नहीं करते। उन्हें लगता है कि रिसीव करने से मुसीबत ज्यादा बढ़ सकती है, लेकिन ऐसा नहीं है। कोर्ट से आए समन को रिसीव करने में कोई कोताही नहीं बरतनी चाहिए। दरअसल, इसमें कोई परेशानी नहीं होती। समन रिसीव करके कोर्ट जाकर कानून की मदद करनी चाहिए। ऐसा नहीं करने वाले ज्यादा मुसीबत में फंस सकते हैं।

Table of content

- What is summons?(सम्मन क्या होता है ?)

- सिविल प्रक्रिया संहिता आदेश 5 समनों का निकला जाना (Issue of Summons)

- समन की तामील (Service Of Summons)

- What is the difference between summons and warrant?(समन और वारंट में क्या अंतर होता है?)

- Warrant on refuse summon ( समन रिसीव न करने पर वॉरंट )

- conclusion( निष्कर्ष )

                                   सिविल प्रक्रिया संहिता 1908
समन निकाला जाना और तामील
धारा 27-29                                          आदेश - 5


What is summons?(सम्मन क्या होता है ?)

"सम्मन" एक कानूनी नोटिस है, जो दीवानी और आपराधिक कार्यवाही के मामले में जारी किया जाता है। सम्मन में, अदालत किसी व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से पेश होने या दस्तावेज़ पेश करने का आदेश जारी करती है। सम्मन एक सिविल अधिकारी द्वारा प्रतिवादी (आरोपी) को भेजा जाता है जिसमें प्राप्तकर्ता को अपना हस्ताक्षर करना होता है। इसी हस्ताक्षर के आधार पर ही सम्मन भेजने की प्रक्रिया पूरी की जाती है।

सम्मन एक अदालत द्वारा जारी किया गया एक आदेश है जिसमें एक व्यक्ति को अदालत में पेश होने के लिए बुलाया जाता है। नैसर्गिक न्याय का यह स्वीकृत सिद्धांत है कि प्रत्येक न्यायिक कार्यवाही का संचालन किया जाना चाहिए और वाद की सुनवाई पक्षकारों की उपस्थिति में की जानी चाहिए। न्यायिक कार्यवाही और पक्षकारों को सुनवाई का अवसर दिए बिना मामले की सुनवाई और उसके अनुसार दिया गया निर्णय न केवल न्याय को दूषित करता है, बल्कि यह पक्षकारों की न्याय के प्रति आस्था को भी प्रभावित करता है। यह बात सिर्फ पक्षकारों पर ही नहीं बल्कि गवाहों पर भी लागू होती है।

पक्षकारों की उपस्थिति के लिए न्यायालय आदेश करता है और पक्षकारों को उपस्थित होने के लिए आदेश जारी करता है। इस आदेश विधिक भाषा में समन (Summon) कहां जाता है। सिविल प्रक्रिया संहिता (Code of Civil Procedure) 1908 के आदेश 5 में न्यायालय में प्रतिवादी की उपस्थिति सुनिश्चित करने हेतु समन का निकाला जाना व उनकी तमीला बाबत उपबंध किया गया है।

धारा २७ के अनुसार जहाँ कोई वाद सम्यक रूप से संस्थित किया जा चुका है वहाँ, उपस्थित होने और दावे का उत्तर देने के लिए समन प्रतिवादी के नाम निकाला जा सकेगा और उसकी तामील विहित रीति से उस दिन को जो वाद संस्थित करने की तिथि से ३० दिन से अधिक न हो की जा सकेगी। धारा २८ में प्रतिवादी के अन्य राज्य में निवास करने की स्थिति में तथा धारा २९ विदेशों में समनों की तामील सम्बन्धी रीति का उपबन्ध किया गया है। व आदेश 16 एवं 16 (अ) में साक्ष्यो तथा कारावास में परिरुद्ध अथवा निरुद्ध व्यक्तियों की उपस्थिति के बारे में प्रावधान किए गए हैं। आदेश 5 में प्रतिवादी की उपस्थिति बाबत प्रावधान उपबंधित किए गए हैं जो निम्न प्रकार है।

सिविल प्रक्रिया संहिता आदेश 5 समनों का निकला जाना (Issue of Summons)​

आदेश 5 नियम 1​

जब वाद सम्यक रूप से संस्थित किया जा चुका हो तब समन में विनिर्दिष्ट किए जाने वाली तारीख को जोकि वाद संस्थित किए जाने से 30 दिन के भीतर उपसंजात होने और दावे का उत्तर देने और प्रतिरक्षा का लिखित कथन करने के लिए समन प्रतिवादी को पेश किया जाए। परंतु जब प्रतिवादी वाद पत्र के उपस्थित किए जाने पर ही उपसंजात हो जाए और वादी का दावा स्वीकार कर ले तब कोई ऐसा समन नहीं निकाला जाएगा; परंतु यह और की परंतु यह और प्रतिवादी नियत 30 दिन की अवधि के भीतर लिखित कथन प्रस्तुत करने में असफल रहता है, तब न्यायालय लिखित कथन फाइल करने के लिए किसी और दिन परंतु जो समन तामील होने के 90 दिन से अधिक ना हो, जैसा न्यायालय निश्चित करें, अनुमति दे सकता है।

वह प्रतिवादी जिसके नाम उपनियम 1 के अधीन समन निकाला गया है: स्वयं, अथवा ऐसे प्लीडर द्वारा, जो सम्यक रुप से अनुदिष्ट हो और वाद से संबंधित सभी सारवान प्रश्नों का उत्तर देने के लिए समर्थ हो, अथवा ऐसे प्लीडर द्वारा, जिसके साथ ऐसा कोई व्यक्ति है ऐसे सभी प्रश्नों का उत्तर देने के लिए समर्थ है, उपसंजात हो सकेगा।

हर ऐसा समन न्यायाधीश या ऐसे अधिकारी द्वारा, जो वह नियुक्त करें, हस्ताक्षरित होगा और उस पर न्यायालय की मुद्रा लगी होगी।

आदेश 5 नियम 2: 

समनो से उपाबद्ध वाद पत्र की प्रति​ -हर समन के साथ एक वाद पत्र की प्रति संलग्न होगी।

आदेश 5नियम 3: 

न्यायालय प्रतिवादी या वादी को स्वयं​ उपस्थित होने के लिए समन निकाला जा सकता है।

आदेश 5 नियम 4​

  • वे व्यक्ति ही न्यायालय में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के लिए आबद्ध है जो कि न्यायालय के स्थानीय क्षेत्राधिकार के अधीन हैं।
  • न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बाहर तो रहता है किन्तु वह न्यायालय से ५० मील से कम दूरी में हो या यदि न्यायालय से २०० मील की दूरी पर निवास करता है तो उस दूरी के ५/६ भाग तक रेल या स्टीमर या अन्य लोक परिवहन के साधन उपलब्ध हो।

आदेश 5 नियम 5​

समन या विवाद्यको के स्थिरीकरण के लिए या अंतिम निपटारे के लिए होगा। न्यायालय समन निकालने के समय यह अवधारित करेगा की क्या वह केवल विवाद्यको के स्थिरीकरण के लिए होगा या वाद के अंतिम निपटारे के लिए होगा और समन में तदनुसार निदेश अंतर्विष्ट होगा; परंतु लघुवाद न्यायालय द्वारा सुने जाने वाले हर वाद में सम्मन वाद के अंतिम निपटारे के लिए होगा।

आदेश 5 नियम 7​

समन प्रतिवादी को आदेश ८ के नियम १-क में विनिर्दिष्ट दस्तावेजों या उनकी प्रतियों को पेश करने के लिए निकाला जा सकता है।

आदेश 5 नियम 8​

अंतिम निपटारे के लिए समन निकाले जाने पर प्रतिवादी को यह निर्देश होगा कि वह अपने साक्ष्यों को पेश करें। जहां समन वाद के अंतिम निपटारे के लिए है वहां उसमें प्रतिवादी को यह निर्देश भी होगा कि जिन साक्ष्यों के साक्षी पर अपने मामले के समर्थन में निर्भर करने का उसका आशय है उन सबको उसी दिन पेश करें जो उसकी उपसंजाति के लिए नियत है।

समन की तामील (Service Of Summons)​

आदेश 5 नियम 9​

न्यायालय द्वारा समन के परिदान सम्बन्धी प्रावधान किये गये है जो कि समन की तामीली का प्रकार है। इसके अनुसार ऐसा समन प्रतिवादी पर व्यक्तिगत रूप से न्यायालय के अधिकारी द्वारा कोरियर सेवा के द्वारा जो कि न्यायालय द्वारा प्राधिकृत है किया जायेगा। इसके अतिरिक्त समन की तामील रजिस्टर्ड डाक द्वारा पावती सहित या स्पीड पोस्ट, ई-मेल, फैक्स संदेश द्वारा भी किया जा सकता है। किन्तु ऐसे की गई तामील वादी के व्यय पर की जायेगी।

आदेश 5 नियम 9क

न्यायालय वादी के आवेदन पर वादी को प्रतिवादी पर समन तामील हेतु परिदत्त कर सकेगा। ऐसा वादी समन की तामील-उसकी एक प्रति व्यक्तिगत रूप से प्रतिवादी को परिदान या निविदान द्वारा करगा। यदि समन निविदत्त होने पर अस्वीकार किया जाता है अथवा सम्मन प्राप्त करने वाला समन की तामील कि अभी स्वीकृति पर हस्ताक्षर करने से इंकार करता है अथवा किसी अन्य कारण से समन व्यक्तिगत रूप से तामिल नहीं हो पाता है तो पक्षकार की प्रार्थना पर न्यायालय ऐसे समन को पुनः जारी कर सकता है और न्यायालय जेसे प्रतिवादी को समन जारी करते हैं उसी विधि द्वारा समन जारी करेगा।

आदेश 5 नियम 10 – तामील का ढंग​

समन की तामील उसकी ऐसी प्रति के परिदान यानी निविदान द्वारा की जाएगी जो न्यायाधीश या ऐसे अधिकारी द्वारा जो वह नियुक्त करें, हस्ताक्षरित हो और जिस पर न्यायालय की मुद्रा लगी हो।

आदेश 5 नियम 11​

अनेक प्रतिवादियों पर तामिल- यदि एक से अधिक प्रतिवादी है तो समन की तामील प्रत्येक प्रतिवादी पर की जायेगी।

आदेश 5 नियम 12​

जब साध्य हो तब समन की तामिल स्वयं प्रतिवादी पर, अन्यथा उसके अभिकर्ता पर की जाएगी- जहां कहीं भी यह साध्य हो वहां तामिल स्वयं प्रतिवादी पर की जाएगी किंतु यदि तामिल का प्रति ग्रहण करने के लिए सशक्त उसका कोई अभिकर्ता है तो उस पर उसकी तामिल पर्याप्त होगी।

आदेश 5 नियम 13​

उस अभिकर्ता पर तामिल जिसके द्वारा प्रतिवादी कारवार करता है- किसी कारबार या काम से सम्बन्धित वादों में यदि ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध समन निकाला जाता है जो कि समन निकालने वाले न्यायालय की अधिकारिता से बाहर का निवासी है तो समन की तामील उसके ऐसे किसी भी प्रबन्धक या अभिकर्ता पर की जा सकती है जो ऐसी अधिकारिता के भीतर ऐसे व्यक्ति के लिए कारबार करता है या काम करता है।

आदेश 5 नियम 14​

अचल सम्पत्ति से सम्बन्धित दोषों के लिए प्रतिकर प्राप्त करने के वाद में यदि समन की तामील स्वयं प्रतिवादी पर नहीं की जा सकती तो वह ऐसे किसी भी अभिकर्त्ता पर की जा सकती है जो कि उस सम्पत्ति का भारसाधक है।

आदेश 5 नियम 15​

जहां तामिल प्रतिवादी के कुटुंब के व्यस्क सदस्य पर की जा सकेगी- किसी प्रतिवादी पर समन की तामील उसके निवास स्थान पर की जानी है और वह उस समय अनुपस्थित है और युक्तियुक्त समय के भीतर उसके ऐसे स्थान पर आने की सम्भावना नहीं है और न ही समन की तामील को ग्रहण करने के लिए उसका कोई भी अभिकर्त्ता ही है तो वहाँ समन की तामील प्रतिवादी के कुटुम्ब के ऐसे किसी भी वयस्क सदस्य पर चाहे पुरुष हो या स्त्री हो किया जा सकता है जो कि उसके साथ निवास कर रहा है। स्पष्टीकरण: सेवक कुटुम्ब का सदस्य नहीं है।

ध्यान दे: आदेश ५ नियम १३, १४ एवं १५ समन की व्यक्तिगत तामिल से सम्बन्धित है।

आदेश 5 नियम 16​

वह व्यक्ति जिस पर तामिल की गईं हैं, अभीस्वीकृति हस्ताक्षरित करेगा- जहां तामिल करने वाला अधिकारी समन की प्रति स्वयं प्रतिवादी को, या उसके निर्मित अभिकर्ता को या किसी अन्य व्यक्ति को, परिदत्त करता है या निवेदित करता है वहां जिस व्यक्ति को प्रति ऐसे परिदत्त या निविदित की गई है उससे यह अपेक्षा करेगा कि वह वह समन पर पृष्ठांकित तामील की अभिस्वीकृति पर अपने हस्ताक्षर करें।

आदेश 5 नियम 17​

जब प्रतिवादी तामील का प्रतिग्रहण करने से इंकार करें या न पाया जाए तब प्रक्रिया- समन की तामील प्रतिवादी के गृह के बाहरी द्वार या सहज दृश्य भाग पर समन की एक प्रति चिपका कर की जायेगी यदि वह समन की तामील का प्रतिग्रहण करने से इन्कार करे, न पाया जाये या समन के तामील को प्रतिग्रहण करने के लिए उसका कोई अभिकर्त्ता नहीं है या न ही ऐसा कोई अन्य व्यक्ति है जिस पर समन की तामील की जा सके।

आदेश 5 नियम 18​

तामिल करने के समय और रीति का पृष्ठांकन- तामील करने वाला अधिकारी उन सभी दशाओं में जिनमें समन की तामील नियम 16 के अधीन की गई है उस समय को जब और उस रीति को जिसमें समन की तामील की गई थी और यदि ऐसा कोई व्यक्ति है जिसने उस व्यक्ति को, जिस पर तामिल की गई है, पहचानता था और जो समन के परिदान या निविदान का साक्षी रहा था तो उसका नाम और पता कथित करने वाली विवरणी मूल समन पर पृष्ठांकित करेगा या कराएगा या मूल समन से उपाबंध करेगा या कराएगा।

आदेश 5 नियम 20​

प्रतिस्थापित तामील- न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि प्रतिवादी समन की तामीली से अपने को बचा रहा है या अन्य रीति से समन की तामील नहीं की जा सकती तो वह यह आदेश दे सकता है कि समन की तामील उसकी एक प्रति न्याय सदन के किसी सहजदृश्य स्थान में लगाकर या यदि कोई गृह हो तो उस गृह के जहाँ कि वह साधारणत: निवास करता है, कारबार करता है या लाभ के लिए कार्य करता है, किसी सहजदृश्य भाग पर लगाकर या अन्य रीति से की जाये। न्यायालय समन की तामील प्रतिवादी पर जहाँ वह रहता है वहाँ के स्थानीय समाचार पत्र में विज्ञापन प्रकाशित करके करवा सकता है।

आदेश 5 नियम 21​

जहाँ प्रतिवादी अन्य न्यायालय की अधिकारिता के भीतर निवास करता है वहाँ ऐसा न्यायालय जिसने समन निकाला है अपने अधिकारी द्बारा या डाक द्वारा या ऐसे कोरियर सेव द्वारा जिसे उच्च न्ययालय प्राधिकृत करे या फैक्स संदेश द्वारा या ई-मेल के द्वारा या किसी अन्य साधन से जिसे उच्च न्यायालय द्वारा तय नियमों में उपबंधित किया जाये राज्य के भीतर या बाहर के न्यायालय को (उच्च न्यायालय के अतिरिक्त) तामील करने को भेज सकता है जहाँ प्रतिवादी निवास करता है।

आदेश 5 नियम 22​

बाहर के न्यायालयों द्वारा निकाले गए समन की प्रेसिडेंसी नगरो में तामिल- जहां कोलकाता मद्रास और मुंबई नगरों की सीमाओं से परे स्थापित किसी न्यायालय द्वारा निकाले गए समन की तामिल ऐसी सीमाओ मैं से किसी के भीतर की जानी है वहां वह लघुवाद न्यायालय को भेजा जाएगा जिसकी अधिकारिता के भीतर उसकी तामिल की जानी है।

आदेश 5 नियम 23​

जिस न्यायालय को समन भेजा गया है- वह न्यायालय, जिसको समन नियम 21 या 22 के अधीन भेजा गया है, उसकी प्राप्ति पर इस भांति असर होगा मानो वह उसी न्यायालय द्वारा निकाला गया था और तब वह उससे संबंधित अपनी कार्यवाहियों के अभिलेख के( यदि कोई हो) सहित समन उसे निकालने वाले न्यायालय को वापस भेज देगा।

आदेश 5 नियम 24​

कारागार में प्रतिवादी पर तामिल- यदि प्रतिवादी कारागार में निरुद्ध है तो समन कारागार के भारसाधक अधिकारी को ऐसे प्रतिवादी पर तामील के लिए परिदत्त किया जायेगा।

आदेश 5 नियम 25​

वहां तामील, जहां प्रतिवादी भारत के बाहर निवास करता है और उसका कोई अभिकर्ता नहीं है- जहां प्रतिवादी भारत के बाहर निवास करता है और उसका भारत में ऐसा कोई अभिकर्ता नहीं है जो तामील प्रतिगृहीत करने के लिए सशक्त है वहां, यदि ऐसे स्थान और उस स्थान के बीच जहां न्यायालय स्थित है, डाक द्वारा संचार है तो, समन उस प्रतिवादी को उस स्थान के पते पर, जहां वह निवास कर रहा है, भेजा जाएगा।परंतु जहां ऐसा प्रतिवादी (बांग्लादेश या पाकिस्तान निवास करता है) वहां समन उसकी एक प्रति के सहित, प्रतिवादी पर तामील के लिए उस देश के किसी ऐसे न्यायालय को भेजा जा सकेगा (जो उच्च न्यायालय ना हो) जिसकी उस स्थान में अधिकारिता है जहां प्रतिवादी निवास करता है; परंतु यह और की जाए ऐसा कोई प्रतिवादी (बांग्लादेश या पाकिस्तान में अधिकारी है, जो यथास्थिति, बांग्लादेश या पाकिस्तान की सेना, नौसेना या वायु सेना का नहीं है) या उस देश की रेल कंपनी या स्थानीय प्राधिकारी का सेवक है वहां समन उसकी एक प्रति के सहित, उस प्रतिवादी पर तामील के लिए उस देश के ऐसे अधिकारी या प्राधिकारी को भेजा जा सकेगा जिसे केंद्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, उस निमित्त विनिर्दिष्ट करें।

आदेश 5 नियम 26​

राजनीतिक अभिकर्ता या न्यायालय की मार्फत विदेशी राज्य क्षेत्र में तामील- जहां 

  • (क) केंद्रीय सरकार में निहित किसी विदेशी अधिकारिता के प्रयोग में, किसी ऐसे विदेशी राज्य क्षेत्र में, जिसमें प्रतिवादी वास्तव में और स्वेच्छा से निवास करता है, कारोबार करता है या अभी लाभ के लिए स्वयं काम करता है, ऐसा राजनीतिक अभिकर्ता नियुक्त किया गया है या न्यायालय स्थापित किया गया है या चालू रखा गया है जिसे उस समन की तामील करने की शक्ति है, जो इस संहिता के अधीन न्यायालय द्वारा निकाला जाए, अथवा
  • (ख) केंद्रीय सरकार ने किसी ऐसे न्यायालय के बारे में जो किसी ऐसे राज्य क्षेत्र में स्थित है और पूर्वोक्त जैसी किसी अधिकारिता के प्रयोग में स्थापित नहीं किया गया या चालू नहीं रखा गया है. राजपत्र में अधिसूचना द्वारा घोषणा की है कि न्यायालय द्वारा इस संहिता के अधीन निकाले गए समन की ऐसे न्यायालय द्वारा तामिल विधिमान्य तामिल समझ जाएगी, वहां समन से राजनीतिक अभिकर्ता या न्यायालय को प्रतिवादी पर तामिल किए जाने के प्रयोजन के लिए डाक द्वारा या अन्यथा या यदि केंद्र सरकार द्वारा इस प्रकार निर्देश दिया जाए तो उस सरकार के विदेशी मामलों से संबंधित मंत्रालय की मार्फत या ऐसे रीति से जो केंद्रीय सरकार द्वारा विनिर्दिष्ट की जाए, भेजा जा सकेगा और यदि राजनीतिक अभिकर्ता या न्यायालय समन को ऐसे राजनीतिक अभिकर्ता द्वारा या उस न्यायालय के न्यायाधीश या अन्य प्राधिकारी द्वारा किए गए तात्पर्यत इस आशय के पष्ठानकन के सहित लौटा देता है की समन की तामील प्रतिवादी पर इसमें इसके पूर्व निर्दिष्ट रिति से की जा चुकी है तो ऐसा पृष्ठांकन का साक्ष्य समझा जाएगा।

आदेश 5 नियम 27​

किसी लोक अधिकारी या रेलवे कम्पनी या स्थानीय अधिकारी के सेवक पर समन की तामील उस कार्यालय के अध्यक्ष को परिदत्त करके की जायेगी जिसके अधीन ऐसा लोक अधिकारी या सेवक नियोजित है।

आदेश 5 नियम 28​

सैनिकों, नौसैनिकों या वायु सैनिकों पर तामिल- यदि प्रतिवादी जल, थल या वायु सेना में सैनिक है तो वहाँ समन की तामील ऐसे सेना के कमांडिग ऑफिसर को तामील कराकर की जायेगी।

आदेश 5 नियम 29​

उस व्यक्ति का कर्तव्य जिस को समन तामील के लिए परिदत्त किया जाए या भेजा जाए – (1) जहां समन तामील के लिए किसी व्यक्ति को नियम 24, नियम 27, या नियम 28 के अधीन परिदत्त किया गया है या भेजा गया है वहां ऐसा व्यक्ति, उसकी तामील, यदि संभव हो, करने के लिए और अपने हस्ताक्षर करके प्रतिवादी की लिखित अभिस्वीकृति के साथ लौटाने के लिए आबद्ध होगा और ऐसे हस्ताक्षर तामील के साक्ष्य समझा जाएंगे। जहां किसी कारण से तामिल असंभव हो वहां समन ऐसे कारण के और तामिल कराने के लिए की गई कार्यवाहियो के पूर्ण कथन के साथ न्यायालय को लौटा दिया जाएगा और ऐसा कथन तामिल ना होने का साक्ष्य समझा जाएगा।

आदेश 5 नियम 30

समन के बदले पत्र का प्रतिस्थापित किया जाना- यदि न्यायालय की राय में प्रतिवादी ऐसी श्रेणी का है जो उसे इस बात का हकदार बनाती है कि उसके प्रति ऐसा सम्मानपूर्ण व्यवहार किया जाये, वहाँ वह समन के बदले एक ऐसा पत्र लिख सकेगा जो न्यायाधीश द्वारा या किसी अधिकृत अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित होगा। इस पत्र में वे सभी विशिष्टियाँ अन्तर्विष्ट होंगी जो सामान्य समन में होती हैं और ऐसा पत्र डाक द्वारा या विशेष संदेश वाहक द्वारा जैसा कि न्यायालय उचित समझे भेजा जायेगा।

What is the difference between summons and warrant?(समन और वारंट में क्या अंतर होता है?)

  • .“समन” एक कानूनी आदेश है जिसे न्यायिक अधिकारी द्वारा प्रतिवादी (अभियुक्त) के लिए जारी किया जाता है जबकि “वारंट” कोर्ट द्वारा पुलिस अधिकारी को जारी किया जाता है |
  •  “समन” में व्यक्ति को कोर्ट में स्वयं हाजिर होने या दस्तावेज पेश करने का आदेश दिया जाता है जबकि “वारंट” में कोर्ट पुलिस को आदेश देती है कि वह प्रतिवादी (अभियुक्त) को कोर्ट के सामने पेश करे |
  • .“समन” में प्रतिवादी (अभियुक्त) को संबोधित किया जाता है जबकि “वारंट” में पुलिस अधिकारी को संबोधित किया जाता है |
  • .“समन” का उद्येश्य अदालत में पेश होने के लिए व्यक्ति के कानूनी दायित्व के बारे में व्यक्ति को सूचित करना है जबकि “वारंट” का मतलब उस व्यक्ति को कोर्ट में लाना होता है जिसने समन को अनदेखा कर दिया है और कोर्ट में हाजिर नही हुआ है|
  • .“समन” के पालन करने की जिम्मेदारी प्रतिवादी (अभियुक्त) की होती है जबकि वारंट का पालन करवाने का काम पुलिस का होता है|

Warrant on refuse summon ( समन रिसीव न करने पर वॉरंट ) 

अगर कोई शख्स समन रिसीव नहीं करता, तो दोबारा समन जारी होता है। बार-बार समन जारी होने के बाद भी अगर कोई जानबूझकर अदालत में पेश नहीं होता और उसका बयान अदालती सुनवाई में अहम है तो अदालत उसके खिलाफ वॉरंट जारी कर सकती है। बिना किसी ठोस और सही कारण अगर कोई गवाह अदालत में पेश होने से बचता है तो उसके खिलाफ गैर जमानती वॉरंट जारी होता है और बाद में पकड़े जाने पर उसके खिलाफ आईपीसी की धारा-174 के तहत कार्रवाई होती है। इसके तहत छह महीने तक की कैद और एक हजार रुपये तक जुर्माने का प्रावधान है।

अगर कोई गवाह समन रिसीव करने के बाद अदालत में किसी विशेष कारण से पेश होने में असमर्थ है तो वह अदालत को लेटर लिखकर कारण बता सकता है या फिर अपने वकील के जरिए छूट ले सकता है। फिर उसकी पेशी के लिए अगली तारीख लगाई जाती है, लेकिन जो कारण अदालत को बताया जाए, उसके पक्ष में सबूत होने चाहिए। सरकारी गवाहों के प्रति कोर्ट का रवैया काफी सहयोगात्मक होता है। कोशिश होती है कि गवाह को एक ही तारीख में फ्री किया जा सके। अगर गवाह ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है और किसी कारण से उसकी पेशी सुनिश्चित नहीं हो पा रही है तो अभियोजन पक्ष की सहमति से उसे अदालत ड्रॉप भी कर देती है।

conclusion( निष्कर्ष )

अगर किसी क्रिमिनल केस में पुलिस ने किसी को गवाह बनाया है, तो निश्चित तौर पर पुलिस ने उसका बयान रेकॉर्ड किया होगा। पुलिस सीआरपीसी की धारा-161 के तहत बयान दर्ज करती है और उस शख्स को सरकारी गवाह बनाती है। बयान पर गवाह के दस्तखत होते हैं। ऐसे मामले में जब ट्रायल शुरू होता है तो एक-एक कर गवाहों को बयान के लिए अदालत से समन जारी होता है। समन जब किसी शख्स के पास पहुंचता है तो उस पर यह भी लिखा होता है कि उसे बतौर गवाह बुलाया जा रहा है। यह भी बताया जाता है कि उसे किस मामले में बुलाया गया है और पेशी की तारीख क्या है। ऐसे समन को रिसीव करना चाहिए और अदालत द्वारा तय तारीख पर बयान के लिए अदालत जाना चाहिए।
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