हमारे देश के विभिन्न भागों में आज भी ऐसी प्रथा मौजूद है जिसमें किसीकर्जदार अथवा उसके वंशजों को कर्ज अदा करने के लिए साइहूकार के परिवार के एकया एक से अधिक सदस्य के साथ बाजार की दर से मजदूरी अथवा सरकार दृवारा अधिसूचित न्यूनतम मजदूरी के बिना एक निर्धारित अथवा बिना किसी निर्धारित अवधि तक काम करना पड़ता है। इस पद्धति की शुरूआत असमान सामाजिक ढाँचे से हुई जिसमें सामंतवादी तथा अर्द्धसामंतवादी परिस्थितियों के लक्षण थे। यह कुछ निश्चित प्रकार की FIRE यथा, प्रथागत दायित्व, जबरन मजदूरी, बेगार अथवा ऋणभार का परिणाम है जो लम्बे समय से प्रचलन में है तथा समाज के आर्थिक रूप से शोषित, लाचार एवं कमजोर वर्ग इसमें शामिल हैं। वे किसी कर्ज के बदले में साहूकार को सेवा प्रदान करने के लिए सहमत होते हैं। कभी-कभी मामूली रकम चुकाने के लिए कई पीढ़ियाँ गुलामी में काम करती हैं, जो उसके किसी दूर के पूर्वज दृवारा अत्यधिक ब्याज दर पर ली गई थी। यह एक असमान आदान-प्रदान की पद्धति है जो कुल मिलाकर मूलभूत मानव अधिकारों का बदतर हनन् है तथा मजदूर की गरिमा का अपमान है।

शोषण क्या है? (what is exploitation?)
शक्ति प्रयोग के द्वारा या फिर हालात का फायदा उठाते हुए जब किसी से इच्छा के विरुद्ध और उसके क्षमता के अधिक काम लिया जाता है और उसके अनुरूप पारिश्रमिक नहीं दिया जाता है तो उसे शोषण (exploitation) कहते हैं।
चूंकि शोषण, स्वार्थ से किसी का या किसी समूह का लाभ उठाने के लिए किया जाता है इसीलिए इसमें व्यक्ति के साथ अमानवीय व्यवहार हो सकता है, उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने वाला कृत्य हो सकता है, आदि।
तभी तो कार्ल मार्क्स ने कहा था कि समाज में दो तरह के वर्ग होते है; एक होते है शोषित वर्ग (Exploited class) और दूसरा शोषक वर्ग (Exploiting class)।
शोषक वर्ग के पास उत्पादन और वितरण के सभी साधनों पर स्वामित्व होता है जबकि शोषित संपत्तिविहीन एवं लाचार होते हैं। ऐसे में शोषक वर्ग कभी नहीं चाहता कि शोषित वर्ग उसके समकक्ष आ जाये।
हमारा देश मार्क्स के सम्पूर्ण सिद्धान्त पर तो नहीं चलता है पर किसी का शोषण न हो इसका ध्यान बकायदे रखता है। शोषण एक स्वस्थ समाज के बिल्कुल भी अच्छा नहीं है, इसीलिए हमारे संविधान निर्माता ने इसके उन्मूलन को प्राथमिकता देते हुए इसे मौलिक अधिकार का हिस्सा बनाया।
इसका सही से पालन हो इसके लिए समय के साथ कई कानून भी इसके समर्थन में बनाए गए ताकि शोषित वर्ग का उन्मूलन हो सकें। तो आइये देखते हैं मौलिक अधिकारों के इस श्रेणी में क्या खास है;
शोषण के विरुद्ध अधिकार और उसके अनुच्छेद
शोषण के विरुद्ध अधिकार (right against exploitation) के तहत कुल 2 अनुच्छेद आते हैं- अनुच्छेद 23 और अनुच्छेद 24। जिसका विवरण निम्न है-
अनुच्छेद 23- मानव के दुर्व्यापार और बलात्श्रम का प्रतिषेध
- मानव के दुर्व्यापार और बेगार तथा इसी प्रकार का अन्य बलात्श्रम प्रतिषिद्ध किया जाता है और इस उपबंध का कोई भी उल्लंघन अपराध होगा जो बिधि के अनुशार दण्डनीय होगा |
- इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए अनिवार्य सेवा अधिरोपित करने से निवारित नहीं करेगी |ऐसी सेवा अधिरोपित करने में राज्य केवल धर्म ,मूलवंश ,जाती या वर्ग या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा |
महत्वपूर्ण शर्तें
शर्तें | विवरण |
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बेगार | यह जबरन श्रम का एक उदाहरण है, जिसे अवैतनिक, अनैच्छिक कार्य के रूप में परिभाषित किया गया है। दूसरे शब्दों में, यह तर्क दिया जा सकता है कि किसी को मुआवजा प्राप्त किए बिना उसकी इच्छा के विरुद्ध काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। |
बंधुआ मजदूर | बंधुआ मजदूरी अनुच्छेद 23 द्वारा निषिद्ध है क्योंकि इसे जबरन श्रम का एक रूप माना जाता है। एक व्यक्ति को अपने कर्ज का भुगतान करने के लिए इस प्रणाली के तहत काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। उनके द्वारा किए गए कार्य के लिए दोगुना भुगतान करते समय उन्हें अपेक्षाकृत कम पैसा मिलता है। इन ऋणों को अक्सर आने वाली पीढ़ियों तक ले जाया जाता है। नतीजतन, इसे एक प्रकार के जबरन श्रम के रूप में जाना जाता है। |
मानव तस्करी | यह लोगों के साथ बिक्री और खरीद के लिए वस्तुओं की तरह व्यवहार करने को संदर्भित करता है और इसमें महिलाओं और बच्चों दोनों की अनैतिक तस्करी शामिल है। दासता को "मानव व्यक्तियों में व्यापार" की परिभाषा में शामिल किया गया है, भले ही इसका अनुच्छेद 23 में स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं किया गया हो। महिलाओं और लड़कियों के अनैतिक व्यापार का दमन अधिनियम, 1956, मानव को आपराधिक बनाने के लिए अनुच्छेद 23 के अनुसार संसद द्वारा पारित किया गया था। तस्करी। |
अनुच्छेद 24 – कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध -
चौदह वर्ष से कम आयु के किसी बालक को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य परिसंकटमय नियोजन में नहीं लगाया जाएगा |
- इस दिशा में 1986 का बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम (Child Labor (Prohibition and Regulation) Act) काफी महत्वपूर्ण कानून है जिसे कि 2016 में फिर से संशोधित कर इसे बाल एवं किशोर श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम 1986 कर दिया गया।
- 2005 में बालक अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम के तहत बालकों के अधिकारों के संरक्षण के लिए एक राष्ट्रीय आयोग और राज्य आयोगों की स्थापना किया गया ताकि बालकों के विरुद्ध अपराधों या बालक अधिकारों के उल्लंघन पर शीघ्र विचारण किया जा सके।
बंधुआ मजदूरों की स्थिति
- बंधुआ मज़दूरी में व्यक्ति निश्चित समय तक सेवाएँ देने के लिये बाध्य होता है। ऐसा वह साहूकारों या ज़मींदारों से लिये गए ऋण को चुकाने के लिये करता है। एक अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2018 में भारत में लगभग 32 लाख बंधुआ मज़दूर थे और इनमें से अधिकांश ऋणग्रस्तता के शिकार थे।
- वर्ष 2016 में जारी ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स के मुताबिक, भारत में तकरीबन 8 मिलियन लोग आधुनिक गुलामी में जी रहे हैं।
- बंधुआ मज़दूरी मुख्यतः कृषि क्षेत्र तथा अनौपचारिक क्षेत्र, जैसे- सूती कपड़ा हथकरघा, ईंट भट्टे, विनिर्माण, पत्थर खदान, रेशमी साड़ियों का उत्पादन, चाँदी के आभूषण, सिंथेटिक रत्न आदि में प्रचलित है।
- गौरतलब है कि कम आय वाले राज्य जैसे- झारखंड, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश आदि बंधुआ मज़दूरी की दृष्टि से अधिक संवेदनशील हैं।
बंधुआ मज़दूरी के प्रसार के कारण
रोजगार के पक्के एवं स्थाई अवसर के अभाव में जिसके परिणामस्वरूप बेरोजगारी, कम रोजगार की स्थिति उत्पन्न होती है, किसी अधिसूचित रोजगार के संबंध में समुचित सरकार द्वारा अधिसूचित न्यूनतम मजदूरी देने से इंकार करने, सामान देकर मजदूरी का भुगतान करने की घातक प्रथा, जिससे मुद्रा से चलने वाली अर्थव्यवस्था में कोई मजदूर अपने घरेलू खर्चों को चुकाने के लिए नकद ऋण ,/ कर्ज / उधार लेने के लिए किसी साहूकार के पास जाने के लिए विवश होता है, घातक जाति व्यवस्था, भूमिहीन एवं संपत्तिहीन परिवार जो वैकल्पिक अथवा बेहतर गुणवत्ता वाले रोजगार की तलाश में भारत के एक भाग से दूसरे भाग में अधिक मजदूरी की आशा में प्रवास करने को विवश होते हैं जहां पहुंच कर (वे गुलामी में फंस जाते हैं)
- उधार की दोषपूर्ण प्रणाली,
- उधार की राशि पर अत्यधिक ब्याज दर
- उधार की राशि के साथ मजदूरी के समायोजन की दोषपूर्ण पद्धति
- उधार के समाप्त न होने की स्थिति में कार्यस्थल को छोड़ने की स्वतंत्रता खत्म होने
- व्यापकअज्ञानता, निरक्षरता, सामाजिक पिछड़ापन तथा
- कर्जदार की ओर से उचित,न्यायसंगत सौदा करने के लिए किसी संगठन का अभाव, समारोह, उपभोग तथा विकास के उद्देश्यों के लिए सस्ते कर्ज के वैकल्पिक साधन का अभाव में बंधुआ मजदूरी प्रथा की उत्पति, उसके प्रचलन तथा उसे बढ़ावा देने के लिए जिम्मेवार हैं ।
घातक बंधुआ मजदूरी प्रथा को शुरू करने वाले कारक हैं : लंबी बीमारी के कारण परिवार में संकट एवं मृत्यु, प्राकृतिक आपदा, दुर्घटना, रोजगार का अकस्मात लोप, सूदखोर द्वारा धोखा एवं कर्ज का डिज़ाईन, शादी एवं अन्य सामाजिक कार्यक्रमों पर होने वाले बेहिसाब खर्च, शराब की लत, प्रवास तथा अवैध व्यापार |
राज्य सरकार इस दोषपूर्ण धारणा के कारण अपने संबंधित राज्यों में बंधुआ मजदूरी के व्याप्त होने को मानने से इंकार करते हैं क्योंकि बंधआ मजदूरी प्रथा की पहचान होने से सरकार एवं प्रशासन की बदनामी होगी। अपनी जानकारी में लाए गए बंधुआ मजदूरी की शिकायतों के प्रति प्राधिकारी अधिकांशत: गैर जवाबदेह पाए जाते हैं। ऐसी शिकायतों पर शीघ्र कार्रवाई करने तथा बंधुआ मजदूरों की पहचान एवं उनकी रिहाई की प्रक्रिया शुरू करने की बजाए वे बंधुआ मजदूरों का हिसाब चुकाने के बाद उन्हें तितर-बितर करने में बंधुआ मजदूर रखने वालों की मदद करते पाए गए हैं |
बंधुआ मज़दूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976
बंधुआ मज़दूरी प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, १९७६ बंधुआ मज़दूरी की प्रथा उन्मूलन हेतु अधिनियमित किया गया था ताकि जनसंख्या के कमज़ोर वर्गों के आर्थिक और वास्तविक शोषण को रोका जा सके और उनसे जुड़े एवं अनुषंगी मामलों के संबंध में कार्रवाई की जा सके। इसने सभी बंधुआ मज़दूरों को एकपक्षीय रूप से बंधन से मुक्त कर दिया और साथ ही उनके कर्जो को भी परिसमाप्त कर दिया। इसने बंधुआ प्रथा को कानून द्वारा दण्डनीय संज्ञेय अपराध माना।
यह कानून श्रम मंत्रालय और संबंधित राज्य सरकारों द्वारा प्रशासित और कार्यान्वित किया जा रहा है। राज्य सरकारों के प्रयासों की अनुपूर्ति करने के लिए मंत्रालय द्वारा बंधुआ मज़दूरों के पुनर्वास की एक केन्द्र प्रायोजित योजना शुरू की गई थी। इस योजना के अंतर्गत, राज्य सरकारों को बंधुआ मज़दूरों के पुनर्वास के लिए समतुल्य अनुदानों (५०:५०) के आधार पर केन्द्रीय सहायता मुहैया कराई जाती है।
अधिनियम के मुख्य प्रावधान इस प्रकार हैं:-
- बंधुआ मजदूर प्रणाली को समाप्त किया जाए और प्रत्येक बंधुआ मजदूर को मुक्त किया जाए तथा बंधुआ मजदूरी की किसी बाध्यता से मुक्त किया जाए।
- ऐसी कोई भी रीति-रिवाज़ या कोई अन्य लिखित करार,जिसके कारण किसी व्यक्ति को बंधुआ मज़दूरी जैसी कोई सेवा प्रदान करनी होती थी,अब निरस्त कर दिया गया है।
- इस अधिनियम के लागू होने से एकदम पहले कोई बंधुआ ऋण या ऐसे बंधुआ ऋण के किसी हिस्से का भुगतान करने की बंधुआ मज़दूर की हरेक देनदारी समाप्त हो गई मान ली जाएगी।
- किसी भी बंधुआ मज़दूर की समस्त सम्पत्ति जो इस अधिनियम के लागू होने से एकदम पूर्व किसी गिरवी प्रभार, ग्रहणाधिकार या बंधुआ ऋण के संबंध में किसी अन्य रूप में भारग्रस्त हो, जहां तक बंधुआ ऋण से सम्बद्ध है, मुक्त मानी जाएगी और ऐसी गिरवी, प्रभार,ग्रहणाधिकार या अन्य बोझ से मुक्त हो जाएगी।
- इस अधिनियम के अंतर्गत कोई बंधुआ मज़दूरी करने की मज़बूरी से स्वतंत्र और मुक्त किए गए किसी भी व्यक्ति को उसके घर या अन्य आवासीय परिसर जिसमें वह रह रहा/रही हो, बेदखल नहीं किया जाएगा।
- कोई भी उधारदाता किसी बंधुआ ऋण के प्रति कोई अदायगी स्वीकृत नहीं करेगा जो इस अधिनियम के प्रावधानों के कारण समाप्त हो गया हो या समाप्त मान लिया गया हो या पूर्ण शोधन मान लिया गया हो।
- राज्य सरकार जिला मजिस्ट्रेट को ऐसी शक्तियां प्रदान कर सकती है और ऐसे कर्तव्य अधिरोपित कर सकती है जो यह सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी हो कि इस अधिनियम के प्रावधानों का उचित अनुपालन हो।
- इस प्रकार प्राधिकृत जिला मजिस्ट्रेट और उसके द्वारा विनिर्दिष्ट अधिकारी ऐसे बंधुआ मज़दूरों के आर्थिक हितों की सुरक्षा और संरक्षण करके मुक्त हुए बंधुआ मज़दूरों के कल्याण का संवर्धन करेंगे।
- प्रत्येक राज्य सरकार सरकारी राजपत्र में अधिसूचना के ज़रिए प्रत्येक जिले और प्रत्येक उपमण्डल में इतनी सतर्कता समितियां, जिन्हें वह उपयुक्त समझे, गठित करेगी।
प्रत्येक सार्तकता समिति के कार्य इस प्रकार है :-
- इस अधिनियम के प्रावधानों और उनके तहत बनाए गए किसी नियम को उपयुक्त ढंग से कार्यान्वित करना सुनिश्चित करने के लिए किए गए प्रयासों और कार्रवाई के संबंध में जिला मजिस्ट्रेट या उसके द्वारा विनिर्दिष्ट अधिकारी को सलाह देना;
- मुक्त हुए बंधुआ मज़दूरों के आर्थिक और सामाजिक पुनर्वास की व्यवस्था करना;
- मुक्त हुए बंधुआ मज़दूरों को पर्याप्त ऋण सुविधा उपलब्ध कराने की दृष्टि से ग्रामीण बैंकों और सहकारी समितियों के कार्य को समन्वित करना;
- उन अपराधों की संख्या पर नज़र रखना जिसका संज्ञान इस अधिनियम के तहत किया गया है;
- एक सर्वेक्षण करना ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या इस अधिनियम के तहत कोई अपराध किया गया है;
- किसी बंधुआ ऋण की पूरी या आंशिक राशि अथवा कोई अन्य ऋण, जिसके बारे में ऐसे व्यक्ति द्वारा बंधुआ ऋण होने का दावा किया गया हो, की वसूली के लिए मुक्त हुए बंधुआ मज़दूर या उसके परिवार के किसी सदस्य या उस पर आश्रित किसी अन्य व्यक्ति पर किए गए मुकदमे में प्रतिवाद करना।
- इस अधिनियम के प्रवृत्त होने के बाद, कोई व्यक्ति यदि किसी को बंधुआ मज़दूरी करने के लिए विवश करता है तो उसे कारावास और जुर्माने का दण्ड भुगतान होगा। इसी प्रकार, यदि कोई बंधुआ ऋण अग्रिम में देता है, वह भी दण्ड का भागी होगा।
- अधिनियम के तहत प्रत्येक अपराध संज्ञेय और ज़मानती है और ऐसे अपराधों पर अदालती कार्रवाई के लिए कार्रवाई मजिस्ट्रेट को न्यायिक मजिस्ट्रेट की शक्तियां दिया जाना ज़रूरी होगा।
बंधुआ मज़दूरी से निपटने में सरकार के प्रयास
संवैधानिक रक्षोपाय
- अनुच्छेद 19 (1) (G) के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या उनकी पसंद का रोज़गार करने का अधिकार होगा।
- अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। बंधुआ मज़दूरी की प्रथा सभी संवैधानिक रूप से अनिवार्य अधिकारों का उल्लंघन करती है।
- अनुच्छेद 23 मानव के दुर्व्यापार और बलातश्रम का प्रतिषेध करता है।
- अनुच्छेद 24 कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध करता है।
- अनुच्छेद 39 राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीतिगत तत्त्वों का उपबंध करता है।
विधिक रक्षोपाय
- बंधुआ मज़दूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 आर्थिक और सामाजिक रूप से कमज़ोर वर्गों के शोषण को रोकने के उद्देश्य से अधिनियमित किया गया है।
- न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम (1948) मजदूरों को भुगतान की जाने वाली मज़दूरी की मानक राशि निर्धारित करता है। अधिनियम में श्रमिकों के लिये निर्धारित समय सीमा भी शामिल है, जिसमें श्रमिकों के लिये अतिरिक्त समय, मध्यावधि अवकाश, अवकाश और अन्य सुविधाएँ शामिल हैं।
- संविदा श्रम (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम, 1970 को बेहतर काम की परिस्थितियों को लागू करने और संविदा मजदूरों के शोषण को कम करने के लिये लागू किया गया है।
- अंतर्राज्यीय प्रवासी कामगार (सेवा के विनियमन और रोजगार की स्थिति) अधिनियम, 1979 को भारतीय श्रम कानून में अंतर्राज्यीय मजदूरों की कामकाजी स्थितियों को विनियमित करने के लिये अधिनियमित किया गया था।
- भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 370 के तहत, गैर-कानूनी श्रम अनिवार्य रूप से निषिद्ध है।
- बाल श्रम (निषेध और विनियमन) अधिनियम, 1986 और संशोधन अधिनियम 2016 बच्चों के नियोजन पर प्रतिबंध आरोपित करता है और कुछ विशेष रोज़गारों में बच्चों के कार्य की दशाओं को नियंत्रित करता है।
- मानव तस्करी (रोकथाम, सुरक्षा और पुनर्वास) अधिनियम, 2018 इसमें सरकार ने तस्करी के सभी रूपों को नए सिरे से परिभाषित किया है।
योजनाओं के द्वारा रक्षोपाय
बंधुआ मज़दूर पुनर्वास योजना 2016 के अनुसार, इस योजना के तहत बंधुआ मज़दूरी से मुक्त किये गए वयस्क पुरुषों को 1 लाख रुपए तथा बाल बंधुआ मज़दूरों और महिला बंधुआ मज़दूरों को 2 लाख रुपए तक की वित्तीय सहायता प्रदान करने की व्यवस्था की गई है। साथ ही योजना के तहत प्रत्येक राज्य को इस संबंध में सर्वेक्षण के लिये भी प्रति ज़िला 4.50 लाख रुपए की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
उज्जवला योजना महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा शुरू की गई, यह योजना मानव तस्करी की शिकार महिलाओं के लिये आश्रय और पुनर्वास प्रदान करती है।बंधुआ मज़दूरी को दूर करने में चुनौतियाँ
- गरीबी का सटीक सर्वेक्षण न हो पाना: वर्ष 1978 के बाद से किसी भी प्रकार का सरकार के नेतृत्व वाला देशव्यापी सर्वेक्षण नहीं हुआ है, जो बंधुआ मज़दूरी उन्मूलन में एक बड़ी रुकावट है।
- आँकड़ों की अनुपलब्धता: बंधुआ श्रम पर सरकारी आँकड़े बचाव और पुनर्वास संख्या पर आधारित हैं। इस तरह के आँकड़े भारत में बंधुआ श्रम की व्यापकता को ठीक से नहीं दर्शाते हैं |
- मामलों की अंडर रिपोर्टिंग: नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो,2017 के आँकड़ों से पता चलता है कि सभी मामले पुलिस द्वारा रिपोर्ट नहीं किये जाते हैं। वर्ष 2014 से 2016 के बीच सिर्फ 290 पुलिस केस दर्ज किये गए जिसमें कुल 1338 व्यक्ति पीड़ित पाए गये।
- कानूनों का लचर कार्यान्वयन: लचर कानून प्रवर्तन के कारण भारत में बंधुआ मज़दूरी एक समस्या बनी हुई है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने इस तथ्य कि ओर ध्यान आकृष्ट कराया है कि बंधुआ मजदूरों की पहचान और पुनर्वास के लिये जिला-स्तरीय सतर्कता समितियाँ अपने कर्तव्यों को गंभीरता से नहीं ले रही हैं।
- श्रमिकों के बीच जागरूकता की कमी: बंधुआ मजदूरों को श्रम कानून के बारे में पता नहीं होता है और वे प्रशासन को केवल तभी सूचना देते हैं जब उनका अत्यधिक शोषण हो जाता है।
- पुनर्वास की समस्या: बाल श्रमिकों सहित बंधुआ मजदूरों के बचाव और पुनर्वास की व्यावहारिक चुनौतियाँ हैं। इनमें पर्याप्त सुदृढीकरण सेवाएँ, मानव और वित्तीय संसाधनों की कमी, सीमित संगठनात्मक जवाबदेही और गैर-सरकारी संगठनों के बीच संवाद की कमी प्रमुख हैं।
बंधुआ मज़दूरी के निवारण में अंतर्राष्ट्रीय प्रयास
- दास व्यापार और दासता उन्मूलन कन्वेंशन (Convention on the suppression of slave trade and slavery), 1926 का उद्देश्य दासता और दास व्यापार के उन्मूलन की पुष्टि करना है।
- नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन (International covenantion on civil and political rights), 1966 दासता और दास व्यापार के सभी रूपों यथा- वंशानुगत सेवा या बलपूर्वक या अनिवार्य श्रम सभी को प्रतिबंधित करता है।
- बच्चों के अधिकारों पर कन्वेंशन (Convention on rights of child), 1989 बच्चों के अधिकारों को सुरक्षित कर उन्हें आर्थिक शोषण से बचाता है।
बंधुआ मज़दूरी के उन्मूलन में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के कन्वेंशन
वर्ष 2017 में भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के दो प्रमुख कन्वेंशन का अनुमोदन किया।
- कन्वेंशन 138: रोजगार हेतु न्यूनतम आयु का निर्धारण
- कन्वेंशन 182: बाल श्रम के निकृष्टतम रूपों यथा- बाल दासता (Child Slavery) (बच्चों को बेचने, उनकी तस्करी करने, बंधुआ मज़दूर बनाने, सशस्त्र समूहों में बलपूर्वक भर्ती करने), बाल वेश्यावृत्ति एवं अश्लील गतिविधियों में उनके अनुचित इस्तेमाल, नशीले पदार्थों की तस्करी जैसे घृणित कृत्यों में उनके उपयोग तथा अन्य जोखिम भरे कार्यों (विशेषकर ऐसे कार्यों में जिनसे बच्चों के स्वास्थ्य, सुरक्षा तथा नैतिकता को नुकसान पहुँचता है) को पूर्णता प्रतिबंधित करना।
सतत् विकास लक्ष्य 8.7 वर्ष 2025 तक बंधुआ मज़दूरी, आधुनिक दासता और बाल श्रम के निकृष्टतम रूपों के उन्मूलन हेतु प्रभावी उपाय करने पर बल देता है।
निष्कर्ष:
अधिकांश मौलिक अधिकार राज्य के अधिकार पर प्रतिबंध के रूप में कार्य करते हैं और व्यक्तिगत स्वतंत्रता में हस्तक्षेप न करने के लिए राज्य पर नकारात्मक कर्तव्य लगाते हैं। हालाँकि, दुनिया में कुछ मौलिक अधिकार लागू होते हैं, विशेष रूप से, अनुच्छेद 17, 23 और 24। अनुच्छेद 23 के राज्य के खिलाफ आवेदन सीमित नहीं है, लेकिन इस तरह यह हर जगह इसका सामना करता है और अनुच्छेद 23 के व्यापक प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार विशाल और अनिश्चित हैं।
भारतीय संविधान के 23 और 24 जैसे अनुच्छेदों को निर्धारित करने के बाद, जो मानव तस्करी को प्रतिबंधित करता है और बाल श्रम को प्रतिबंधित करता है, समाज के कमजोर वर्गों को अभी भी ऐसी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है। संसद इस अधिनियम के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने के लिए बाध्य है और 1976 के बंधुआ श्रम उन्मूलन अधिनियम और 1986 के बाल श्रम अधिनियम के रूप में कानून के तहत शोषण के अधिकार अधिनियम के प्रावधानों के साथ दंडनीय है।
बाल श्रम के निषेध के लिए देश में जागरूकता फैलाई जानी चाहिए और समाचार पत्रों और अन्य ऑनलाइन संसाधनों में विज्ञापन दिया जाना चाहिए। साथ ही गांवों में भी फैलाना चाहिए।
आज युवा चाहते हैं तो ही समाज में बड़ा बदलाव ला सकते हैं। तब भारत एक ऐसा राष्ट्र बन सकता है जहाँ नागरिक समानता के अधिकार के साथ और शोषण के अधिकार के भय के बिना रह सकते हैं |
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