ग्राम न्यायालय सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी । Gram Nyayalaya in hindi | Village Court in Hindi |

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 भारत गाँवों का देश है इसकी 80 प्रतिशत आबादी गाँवों में रहती है जो कृषक अशिक्षित और निर्धन भी हैं वे अपने अधिकारों व कर्तव्यों से भी अवगत नहीं हैं कानूनों कि जानकारी भी  होना आवश्यक है यही कारण  है कि अधिकांश लोग न्याय से वंचित रह जाते है वे अर्थाभाव या अन्य किसी कारण से न्यायालय में दस्तक नही दे पाते है |

ग्रामीण भारत में न्याय सुनिश्चित करना हमेशा से एक चुनौती रहा है, ग्राम न्यायालय इसी चुनौती को कम करने की दिशा में किया गया एक प्रयास है;

इस लेख में हम ग्राम न्यायालय (Gram Nyayalaya) पर सरल और सहज चर्चा करेंगे और इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझने की कोशिश करेंगे, तो इस लेख को अच्छी तरह से समझने के लिए अंत तक जरूर पढ़ें, काफी कुछ नया जानने को मिलेगा।


ग्राम न्यायालय क्या है?-What is Gram Nyayalaya?

ग्रामीण लोगों को त्वरित और आसान न्यायिक व्यवस्था तक पहुँच प्रदान करने के उद्देश्य से 2008 में ग्राम न्यायालय अधिनियम (Gram Nyayalayas Act) को अधिनियमित किया गया।

इसका उद्देश्य ग्रामीण नागरिकों को उनके द्वार पर न्याय सुलभ कराना और यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी प्रकार की सामाजिक-आर्थिक अशक्ताओं के कारण कोई ग्रामीण नागरिक न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रह जाये।

पृष्ठभूमि:

  • भारतीय संविधान के भाग-4 में राज्य के नीति निदेशक तत्वों के अंतर्गत अनुच्छेद 39 (a) में राज्यों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है कि -
  • राज्य का विधि तंत्र इस तरह से काम करे जिससे सभी नागरिकों के लिये न्याय प्राप्त करने का समान अवसर उपलब्ध हो सके।
  • इसके साथ ही राज्यों को उपयुक्त विधानों, योजनाओं या किसी अन्य माध्यम से निःशुल्क विधिक सहायता प्रदान करने हेतु व्यवस्था करनी चाहिये, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी नागरिक आर्थिक या किसी अन्य कारण से न्याय प्राप्त करने से वंचित न रहे।
  • वर्ष 1986 में 114वें विधि आयोग (114th Law Commission) ने अपनी रिपोर्ट में ग्राम न्यायलय की अवधारण प्रस्तुत करते हुए ग्राम पंचायत स्तर पर ‘ग्राम न्यायालयों’ की स्थापना की सिफारिश की।
  • समिति की सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए राज्यसभा में 15 मई, 2007 को ‘ग्राम न्यायालय अधिनियम’ का मसौदा प्रस्तुत किया गया।
  • यह कानून 2 अक्तूबर, 2009 को लागू किया गया।
  • ध्यातव्य है कि देश की स्वतंत्रता से पूर्व ‘द तमिलनाडु विलेज कोर्ट्स एक्ट-1888’ (The Tamil Nadu Village Courts Act, 1888) के माध्यम से भी पंचायत स्तर पर कुछ इसी तरह की व्यवस्था को वैधानिकता प्रदान करने का प्रयास किया गया था।
  • वर्तमान में देश के कुल 9 राज्यों में मात्र 208 ग्राम न्यायालय ही कार्यरत हैं, जबकि केंद्र सरकार की 12वीं पंचवर्षीय योजना में देशभर में ऐसे 2500 ग्राम न्यायालयों को स्थापित करने का प्रस्ताव रखा गया था।

ग्राम न्यायालय स्थापित करने का कारण-Reason for establishing Gram Nyayalaya.

पंचायती राज व्यवस्था जो कि राज्य के नीति निदेशक तत्व का हिस्सा है और जो कि गांधी दर्शन पर आधारित है; को 1993 में वैधानिक दर्जा देने के बाद ये हमारे व्यवहार का एक हिस्सा बन गया। उस समय ग्रामीण इलाकों में त्वरित और समझौतापूर्ण न्याय के लिए पंचायतें बैठती थी पर उसे वैधानीक दर्जा हासिल नहीं था।

संविधान के उसी नीति निदेशक तत्व वाले भाग के अनुच्छेद 39A कहता है कि समाज के गरीब और कमजोर वर्गों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान की जानी चाहिए ताकि सभी के लिए न्याय सुनिश्चित हो सके। एक तो ये बात हो गई,
दूसरी बात ये है कि 1986 में भारत के विधि आयोग ने अपनी 114वीं रिपोर्ट (जो कि ग्राम न्यायालय के फोकस करके ही बनाया गया था) में ग्राम न्यायालयों की स्थापना का सुझाव दिया है जिससे कि सस्ता एव समुचित न्याय आम नागरिक को सुलभ कराया जा सकें। 2008 में जो ग्राम न्यायालय अधिनियमpdf बना है वो मोटे तौर पर विधि आयोग की अनुशंसाओं पर ही आधारित है।

तीसरी बात ये कि उचित न्याय लोकतंत्र का एक केन्द्रीय दर्शन है। इसीलिए लोकतंत्र को साकार करने के लिए ये जरूरी हो जाता है कि गरीबों, वंचितों, शोषितों को उनके दरवाजे पर ही न्याय उपलब्ध करवाया जाये ताकि ग्रामीण लोगों को त्वरित, सस्ता व समुचित न्याय मिल सके।

ग्राम न्यायालय के प्रावधान-Provisions of Gram Nyayalaya.

  1. राज्य सरकार, ग्राम_न्यायालय अधिनियम 2008 के तहत उच्च न्यायालय से परामर्श करने के पश्चात जिले में मध्यवर्ती स्तर पर प्रत्येक पंचायत के लिए अथवा मध्यवर्ती स्तर पर निकटवर्ती पंचायतों के एक समूह के लिए या जिस राज्य मे मध्यवर्ती स्तर पर कोई पंचायत नहीं हो, वहाँ पंचायतों के समूह के लिए ग्राम_न्यायालय की स्थापना कर सकती है।
  2. राज्य सरकार, उच्च न्यायालय से परामर्श करने के पश्चात ग्राम_न्यायालय की स्थानीय सीमा तय कर सकती है या ऐसी सीमाओं को बढ़ा सकती है, घटा सकती है।
  3. प्रत्येक ग्राम_न्यायालय का मुख्यालय उस मध्यवर्ती पंचायत के मुख्यालय पर जिसमें ग्राम_न्यायालय स्थापित है या ऐसे अन्य स्थान पर अवस्थित होगा, जो राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किया जाएगा।
  4. राज्य सरकार, उच्च न्यायालय के परामर्श से, प्रत्येक ग्राम_न्यायालय के लिए एक न्यायाधिकारी (Judge) की नियुक्ति करेगी। लेकिन कोई व्यक्ति, न्यायाधिकारी के रूप में नियुक्त किए जाने के लिए तभी अर्हित होगा, जब वह प्रथम वर्ग के न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में नियुक्त किए जाने के लिए पात्र हो।
  5. न्यायाधिकारी जो इन ग्राम न्यायालयों की अध्यक्षता करेंगे, अनिवार्य रूप से न्यायिक अधिकारी होंगे और उन्हे उतना ही वेतन और उतनी ही शक्तियां प्राप्त होंगी जितनी कि एक प्रथम श्रेणी के दंडाधिकारी (Magistrate) को मिलता है, जो उच्च न्यायालयों के अधीन कार्य करते हैं।
  6. राज्य सरकार, ग्राम_न्यायालय को सभी सुविधाएं प्रदान करेगी जिनके अंतर्गत उसके मुख्यालय से बाहर विचारण (Trial) या कार्यवाहियाँ करते समय न्यायाधिकारी द्वारा चल न्यायालय (Movable court) लगाने के लिए वाहनों की व्यवस्था भी है।

ग्राम न्यायालय की शक्तियाँ एवं प्राधिकार-Powers and authority of Gram Nyayalaya.

1. दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) 1973 या सिविल प्रक्रिया संहिता (Code of Civil Procedure) 1908 या फिर उस समय प्रवृत (In force) किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी, ग्राम न्यायालय सिविल और दांडिक दोनों अधिकारिता का प्रयोग ”ग्राम न्यायालय अधिनियम” के तहत बताए गए सीमा तक करेगा।

2. जिला न्यायालय या सत्र न्यायालय ऐसी तारीख से (जो उच्च न्यायालय द्वारा अधिसूचित किया जाये) अपने अधीनस्थ न्यायालयों के समक्ष लंबित सिविल या दांडिक मामलों को, ऐसे मामलों का ट्रायल या निपटारा करने के लिए सक्षम न्यायालय को अंतरित कर सकेगा।

ग्राम न्यायालय अपने विवेकानुसार उन मामलों का या तो पुनः ट्रायल कर सकेगा या उन पर उस प्रक्रम से आगे कार्यवाही कर सकेगा, जिस पर अंतरित (Transfer) किए गए थे।

3. विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 6 के तहत गठित राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, अधिवक्ताओं का एक पैनल तैयार करेगा और उनमें से कम से कम दो को प्रत्येक ग्राम न्यायालय के साथ लगाए जाने के लिए समनुदेशित (Assigned) करेगा, जिससे कि ग्राम न्यायालय द्वारा उनकी सेवाएँ अधिवक्ता की नियुक्ति करने में असमर्थ रहने वाले अभियुक्त को उपलब्ध कराई जा सके। हालांकि कोई व्यक्ति अगर चाहे तो वे निजी वकील रख सकता है।

4. ग्राम न्यायालय एक चलंत न्यायालय होगा और यह फ़ौजदारी और दीवानी दोनों न्यायालयों की शक्ति का उपभोग करेगा और दोनों तरह के मामलों को निपटा सकेगा। हालांकि आपराधिक मामलों में ग्राम न्यायालय उन्हीं को देखता है जिनमें अधिकतम 2 वर्ष की सज़ा होती है।

5. इसके अलावे भी ग्राम न्यायालय को निम्नलिखित शक्तियाँ प्राप्त होंगी-
  • व्यतिक्रम (Irregularity) के लिए किसी मामले को खारिज करना या एक पक्षीय कार्यवाही करना
  • किसी ऐसे आनुषंगिक विषय (Incidental subject) के संबंध में, जो कार्यवाहियों के दौरान उत्पन्न हो, ग्राम न्यायालय ऐसी प्रक्रिया अपनाएगा, जो वह न्याय के हित में न्यायसंगत और युक्तियुक्त समझे।
  • कार्यवाहियाँ, जहां तक व्यवहार्य हो, न्याय के हितों से संगत होंगी और सुनवाई दिन-प्रतिदिन के आधार पर उसके निष्कर्ष तक जारी रहेगी, जब तक कि ग्राम न्यायालय ऐसी कारणों से, जिन्हे लेखबद्ध किया जाएगा, सुनवाई को अगले दिन से परे स्थगित करना आवश्यक नहीं समझता।
  • प्रत्येक निर्णय, ग्राम न्यायालय द्वारा सुनवाई के समाप्त होने के ठीक पश्चात या पंद्रह दिन के बाद किसी निर्धारित समय पर, जिसकी सूचना पक्षकारों को दी जाएंगी, खुले न्यायालय में सुनाया जाएगा |
6. ग्राम न्यायालय सिविल न्यायालय की शक्तियों का कुछ संशोधनों के साथ उपयोग करेगा और अधिनियम में उल्लिखित विशेष प्रक्रिया का अनुसरण करेगा।

7. ग्राम न्यायालय पक्षों के बीच समझौता करने का हर संभव प्रयास करेगा ताकि विवाद का समाधान सौहार्दपूर्ण तरीके से हो जाये और इस उद्देश्य के लिए मध्यस्थों की भी नियुक्ति करेगा।

8. ग्राम न्यायालय द्वारा पारित आदेश की हैसियत हुक्मरानो के बराबर होगी और इसके कार्यान्वयन के विलंब को रोकने के लिए ग्राम न्यायालय संक्षिप्त प्रक्रिया का अनुसरण करेगा।

9. ग्राम न्यायालय, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 के तहत जो साक्ष्य जुटाने की प्रक्रिया और उसके आधार पर जो न्याय करने की प्रक्रिया है; उससे बंधा नहीं होगा, बल्कि यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों से निर्देशित होगा। वो भी तब तक जब तक उच्च न्यायालय द्वारा ऐसा कोई नियम नहीं बनाया जाता।

10. अगर फ़ौजदारी मामलों में किसी को फैसला स्वीकार्य नहीं है तो वे जिला सत्राधीन न्यायालय में अपील कर सकेगा। जिसकी सुनवाई और निस्तारण अपील दाखिल होने के छह माह की अवधि के अंदर किया जाएगा।

11. इसी प्रकार दीवानी मामलों अगर किसी को फैसला स्वीकार्य नहीं है तो वे जिला न्यायालय में अपील कर सकेगा। जिसकी सुनवाई और निस्तारण अपील दाखिल होने के छह माह की अवधि के अंदर किया जाएगा।

12. ग्राम न्यायालय की अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर कार्यरत प्रत्येक पुलिस अधिकारी ग्राम न्यायालय की उसके विधिपूर्ण प्राधिकार के प्रयोग में सहायता करने के लिए आबद्ध होगा।

यानी कि जब कभी ग्राम न्यायालय, अपने कृत्यों के निर्वहन में, किसी राजस्व अधिकारी या पुलिस अधिकारी या सरकारी सेवक को ग्राम न्यायालय की सहायता करने का निदेश देगा तब वह ऐसी सहायता करने के लिए आबद्ध होगा।

ग्राम  न्यायालय के फैसलों में अपील-Appeal in the decisions of Gram Nyayalaya.

ग्राम न्यायालय द्वारा दिये गए किसी आदेश को उसके जारी होने के 30 दिनों के अंदर संबंधित ज़िला न्यायालय या सत्र न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।

दीवानी मामले: ग्राम न्यायालय द्वारा दीवानी मामले में दिये गए किसी आदेश को संबंधित ज़िला न्यायालय (District Court) में चुनौती दी जा सकती है।

फौजदारी मामले: ग्राम न्यायालय द्वारा फौजदारी मामले में दिए गये किसी आदेश को संबंधित सत्र न्यायालय (Session Court) में चुनौती दी जा सकती है।

ज़िला एवं सत्र न्यायालयों को ग्राम न्यायालय के आदेश के खिलाफ प्राप्त याचिकाओं पर 6 माह के अंदर फैसला देना होगा।

ग्राम न्यायालयों की स्थापना के लाभ-Benefits of setting up Gram Nyayalayas.

आज भी भारत की कुल जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा देश के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में रहता है। ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंख्या के अनुपात में विधिक निकायों की कमी और ग्रामीण क्षेत्रों से इनकी दूरी देश के सभी नागरिकों तक विधि व्यवस्था की पहुँच के लिये एक बड़ी चुनौती है। ध्यातव्य है कि वर्ष 2017 में देश भर के ज़िला न्यायालयों और उससे निचले स्तरों पर कार्यरत न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या लगभग 3 करोड़ थी। ग्राम न्यायालयों की स्थापना से न्याय तंत्र के इस भार में कुछ स्तर तक कमी लाने में सहायता मिलेगी।

ग्राम न्यायालयों की स्थापना के कुछ लाभ निम्नलिखित हैं-

  1. ग्राम पंचायत स्तर पर न्यायालयों की तक पहुँच से लोगों के लिये समय और धन की बचत होगी।
  2. लंबित मामलों में एक बड़ी संख्या उन मामलों की भी है जिनका आपसी सुलह या मध्यस्थता से निस्तारण किया जा सकता है, ग्राम न्यायालयों के गठन से ऐसे मामलों में भारी कमी आएगी।
  3. न्याय प्रक्रिया में आसानी और इसके तीव्र निस्तारण से जनता में विधि व्यवस्था के प्रति विश्वास बढ़ेगा।

चुनौतियाँ-Challenges.

प्रारंभ में कुछ राज्यों में ग्राम न्यायालयों की स्थापना की गई परंतु बाद में राज्यों ने इस संदर्भ में अनेक चुनौतियों का हवाला देकर योजना के प्रति कोई उत्साह नहीं दिखाया। ग्राम न्यायालयों की स्थापना में कुछ चुनौतियाँ निम्नलिखित हैं-
  • मानव संसाधनों की कमी: वर्तमान में देश के कई राज्यों में विधि विभाग के शीर्ष अधिकारियों के साथ सहायक पदों पर कार्य करने वाले सदस्यों की भारी कमी है। ध्यातव्य है कि ग्राम न्यायालय की रूपरेखा तैयार करने के लिये गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट में एक ग्राम न्यायालय के व्यवस्थित संचालन के लिये विभिन्न स्तरों पर 21 सदस्यों को आवश्यक बताया था। ऐसे में पंचायत स्तर पर ग्राम न्यायालय की स्थापना करना और उसका सुव्यवस्थित संचालन करना राज्यों के लिये एक बड़ी चुनौती है।
  • आर्थिक कारण: योजना की रूपरेखा में समिति ने ऐसे न्यायालयों की स्थापना के लिये 1 करोड़ रुपए की लागत का अनुमान लगाया था, गौरतलब है कि पिछले 10 वर्षों में यह लागत और बढ़ी है। इसे देखते हुए ज़्यादातर राज्यों ने केंद्र सरकार की सहायता के बगैर ग्राम पंचायत स्तर पर ग्राम न्यायालयों के संचालन में असमर्थता जताई है।
  • संसाधनों का अभाव: देश के अनेक दूरस्थ क्षेत्रों के गाँवों में महत्त्वपूर्ण संसाधनों, जैसे-24 घंटे बिजली, पक्की सड़क, बेहतर इंटरनेट का न होना भी इस योजना के कार्यान्वयन में एक बड़ी बाधा रही है।
  • अन्य हितधारकों के सहयोग की कमी: इस योजना के क्रियान्वयन में एक बड़ी चुनौती विधि तंत्र से जुड़े अन्य विभागों के सहयोग में कमी रही है। ज़िला स्तर पर कार्यरत वकील, पुलिस और विधि विभाग के अनेक शीर्ष अधिकारी नगरों या शहरों को छोड़कर गाँवों में नहीं जाना चाहते, जिसके कारण योजना को समय-समय पर विभिन्न समूहों के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष विरोध का सामना करना पड़ा है।
  • राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी: ग्राम न्यायालय के संचालन में अधिकांश बाधाएँ मानव-निर्मित हैं और कुछ प्रयासों से इनका समाधान किया जा सकता है। परंतु इस परियोजना को लागू करने के लिये शीर्ष राजनीतिक प्रतिनिधियों से अपेक्षित प्रयास में भारी कमी देखी गई है।

समाधान-Solution.

ग्राम न्यायालय की स्थापना और संचालन के लिये राज्य तथा केंद्र सरकारों को मिलकर आर्थिक सहयोग करना चाहिये, जिससे देश की न्यायिक व्यवस्था का सुचारु रूप से संचालन हो सके। ज़िला स्तर पर एवं अन्य स्थानीय न्यायालयों में रिक्त पदों को भरकर न्याय तंत्र पर बढ़ रहे बोझ को कम किया जा सकता है।

देश के सुदूर हिस्सों के गाँवों तक विभिन्न महत्त्वपूर्ण सुविधाओं जैसे-सड़क, इंटरनेट, बिजली आदि की पहुँच को बेहतर बनाकर ग्राम न्यायालयों तक लोगों की पहुँच को बढ़ाया जा सकता है।

साथ ही सरकार द्वारा इस योजना से जुड़े अन्य हितधारकों जैसे-वकीलों, स्टांप पेपर विक्रेताओं आदि की ज़िम्मेदारी सुनिश्चित कर इस योजना के सफल क्रियान्वयन में तेज़ी लाई जा सकती है।

इस योजना का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे नागरिक हैं, अतः उनके बीच ग्राम न्यायालयों और न्यायालय में उनके अधिकारों को लेकर जागरूकता बढ़ाकर इस योजना के उद्देश्यों को सफल बनाया जा सकता है।

जैसा कि ऊपर भी समझा है, ग्राम न्यायालय अधिनियम 2008 के अंतर्गत राज्य सरकारों को ही उच्च न्यायालयों के परामर्श से ग्राम न्यायालयों की स्थापना करनी है

अधिनियम के अंतर्गत पाँच हज़ार ग्राम न्यायालयों की स्थापना की आशा की गई है। जिसके लिए केंद्र सरकार 1400 करोड़ रुपए संबन्धित राज्यों को सहायता के रूप मे उपलब्ध कराएगी।

हालांकि इस सब के बावजूद भी ग्राम_न्यायालय की स्थिति अपेक्षानुकूल तो बिलकुल भी नहीं रहा है। 2019 के आंकड़ों के हिसाब से अभी बस नीचे दिये गए कुछ राज्यों ने ही इसे शुरुआत की है। बाद बाकी राज्य इस मामले में अभी भी पुराने ढर्रे पर ही चल रहा है।

2019 के आंकड़ें के अनुसार राज्यवार ग्राम न्यायालय की स्थिति-State-wise status of Gram Nyayalayas as per 2019 figures.

क्र .स . राज्य कचहरी ग्राम अधिसूचित कचहरी ग्राम कार्यात्मक
1 मध्य प्रदेश 89 89
2 राजस्थान 45 45
3 कर्नाटक 2 0
4 ओड़िशा 22 14
5 महाराष्ट्र 39 24
6 झारखण्ड 6 1
7 गोवा 2 0
8 पंजाब 2 1
9 हरियाणा 2 2
10 उत्तर प्रदेश 104 4
11 केरला 30 30
343 210
 

ग्राम न्यायालयों को प्रोत्साहित न करने के पीछे कई कारण सामने आते हैं जैसे कि पुलिस अधिकारियो एवं अन्य राज्य कर्मचारियों का ग्राम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में रहने के प्रति झिझक, बार काउंसिल की अनुत्साहपूर्ण प्रतिक्रिया, नोटरियों तथा स्टैम्प वैंडरों कि अनुपलब्धता, नियमित न्यायालयों का समवर्ती क्षेत्राधिकार, आदि।

हालांकि ग्राम न्यायालयों के कार्य संचालन को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर अप्रैल 2013 में उच्च न्यायालयों के कार्याधीशों एवं राज्यों के मुख्यमंत्रियों के एक सम्मेलन में चर्चा हुई। इस सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया कि राज्य सरकार और उच्च न्यायालय मिलकर ग्राम न्यायलायों की स्थापना के बारे में निर्णय ले, जो कहीं भी संभव हो और उनकी स्थानीय समस्याओं का भी ध्यान रखे। पूरा ध्यान उन ताल्लुकाओं में ग्राम_न्यायालय स्थापित करने पर होना चाहिए जहां नियमित न्यायालय नहीं है।

निष्कर्ष-Conclusion.

‘ग्राम न्यायालय’ न सिर्फ ग्रामीण क्षेत्र में रह रहे नागरिकों को आसानी से न्याय उपलब्ध कराने में सहायक हैं, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया में सुधारों के परिणामस्वरूप न्याय तंत्र पर दबाव को कम करने व आम जनता के बीच विधि व्यवस्था के प्रति उनके नज़रिये को पुनः परिभाषित करने का अवसर प्रदान करते हैं। ‘ग्राम न्यायालय’ की मूल भावना ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे लोगों को आसानी से उनके घर के नज़दीक और निःशुल्क न्याय प्रदान करना है। ऐसे में ग्राम न्यायालय आम जनता तक न्याय की पहुँच बढ़ाने के साथ ही समय और धन की बचत कर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से देश के विकास में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देंगे।
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