हमारे संविधान मे SC/ST Act क्यूं बनाया गया है यह प्रश्न हम सभी के मन मे जरूर उठता होगा, क्योकि इस कानून का अधिकांशतः दुरूपयोग हम अपनी आंखो से देख रहे है और कोई न कोई सरीफ व्यक्ति इस कानून का शिकार हो रहा है, किसी भी मामले मे अगर शिकायतकर्ता नीची जाति या हरिजन है, तो वह सबसे पहले वह हरिजन एक्ट ही लगाता है चाहे कोई और बात ही क्यो न हो, सबसे पहले वह इसी कानून का सहारा लेता है, क्योकि वह जानता है, कि यह कानून हमारे लिये ज्यादा फायदेमंद रहेगा। इसके अलावा उसे यह भी मालूम है, कि इस कानून के तहत सरकार हमे मुआवजा भी देगी। इसलिये भी इस कानून दरूपयोग काफी तेजी से हो रहा है।
एससी एसटी एक्ट कानून 1989 को बनाया गया जिसका मकसद सिर्फ इतना सा था कि हमारे भारतीय समाज मे जातिवाद के आधार पर कोई किसी का अपमान या उसके अधिकारो का हनन न कर सके है। इसके साथ ही जब से भारत देश आजाद हुआ तब से हमारे समाज मे जातिवाद और अधिक बढ़ा क्योकि हमारे समाज मे कोई भी वाद उत्पन्न होता है, तो सबसे पहले मुद्दा जाति वाद को ही बनाया जाता है, जिसको लेकर समाज मे भेद-भाव किया जाने लगता है, जिसके कारण भारत मे यह कानून लाया गया।
आज हम इस पोस्ट के माध्यम से जानेंगे कि एससी/एसटी एक्ट क्या है? यह कानून किन-किन मामलो मे लागू होता है और मुआवजा कैसे और कब, कितना मिलता है? क्या कानूून के तहत हुये अपराध मे जमानत मिल सकती है, और इस कानून के तहत क्या सजा का प्रावधान है, इन सभी बिन्दुओ पर आज हम विस्तार से चर्चा करेेंगे।
Sc/St एक्ट क्या है?- What is SC/ST Act?
एससी/एसटी एक्ट (SC/ST Act) या अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति (प्रतिबंध और अन्य दुर्व्यवहार) अधिनियम 1989 भारत के संघ राज्यों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को अन्य समुदायों द्वारा उन पर आरोपित अपराधों के खिलाफ संरक्षण प्रदान करता है।
इस अधिनियम के तहत, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को उन पर आरोपित अपराधों के मामले में बेहतर संरक्षण प्रदान किया जाता है। इस अधिनियम के तहत, अपराधियों को दण्डित किया जाता है जो इन समुदायों के लोगों को उनकी जाति के कारण जान से मारने, जीवन जीने की अधिकारों से वंचित करने, उनके सामाजिक और आर्थिक उत्थान को रोकने या कम करने जैसे अपराधों के लिए।
यह अधिनियम अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को समाज में उनके हकों को प्रबल बनाने का एक प्रयास है जो इतिहास में उन पर अन्य समुदायों द्वारा किये गए दुर्व्यवहारों का पुनर्प अर्थ करने के लिए बनाया गया है। इस अधिनियम के तहत, अपराधियों को सख्त दंड देने के साथ-साथ, यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों की सुरक्षा और संरक्षण की व्यवस्था हो।
इस अधिनियम के अंतर्गत, अपराध की शिकायत करने वाले व्यक्ति को समाज के किसी भी पदाधिकारी से निश्चित समय सीमा के भीतर संबंधित प्राधिकारियों के पास शिकायत दर्ज करने का अधिकार होता है। इसके साथ ही, अधिनियम द्वारा एक स्पेशल कोर्ट की स्थापना की गई है जो समस्त अपराध मामलों के लिए जिम्मेदार होती है।
एससी/एसटी एक्ट का मुख्य उद्देश्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को उनके मौलिक अधिकारों के लिए लड़ने में मदद करना है और समाज में उन्हें एक बराबरी की भावना के साथ जीवन जीने में सहायता प्रदान करना है।
धारा 2.के अनुशार परिभाषा —इस अधिनियम में , जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,—
(क) “अत्याचार” से धारा 3 के अधीन दग्नीय अपराध अभिप्रेत है;
(ख) “संहिता” से दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) अभिप्रेत है;
(खख). “आश्रित” से पीड़ित का ऐसा पति या पत्नी, बालक, माता -पिता भाई और बहिन जो ऐसे पीड़ित पर अपनी सहायता और भरण पोषण के लिए पूर्णत: या मुख्यतः आश्रित हैं;
(खग). “आर्थिक बहिष्कार” से निम्नलिखित अभिप्रेत है,-
(i). अन्य व्यक्ति से भाड़े पर कार्य से संबंधित संव्यवहार करने या कारबार करने से इन्कार करना; या
(ii) अवसरों का प्रत्याख्यान करना जिनमें सेवाओं तक पहुंच या प्रतिफल के लिए सेवा प्रदान करने हेतु संविदाजन्य अवसर सम्मिलित हैं; या
(iii) ऐसे निबंधनों पर कोई बात करने से इंकार करना जिन पर कोई बात, कारबार के सामान्य अनुक्रम में सामान्यतया की जाएगी; या
(iv) ऐसे वृत्तिक या कारबार संबंधों में प्रतिविरत रहना, जो किसी अन्य व्यक्ति से रखे जाएं ;
(खघ) “अनन्य विशेष न्यायालय”से इस अधिनियम के अधीन अपराधों का अनन्य रूप से विचारण करने के लिए धारा 14 की उपधारा (1) के अधीन स्थापित अनन्य विशेष न्यायालय अभिप्रेत है ;
(खड.) “वन अधिकार” का वह अर्थ होगा, जो अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 (2007 का 2) की धारा 3 की उपधारा (1) में है ;
(खच) “हाथ से मैला उठाने वाले कर्मी” का वह अर्थ होगा, जो हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 (2013 का 25) की धारा 2 की उपधारा (1) के खंड (छ) में उसका है;
(खछ) “लोक सेवक” से भारतीय दंड संहिता, 1860(1860 का 45) की धारा 21 के अधीन यथापरिभाषित लोकसेवक और साथ ही तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन लोक सेवक समझा गया कोई अन्य व्यक्ति अभिप्रेत है और जिनमें, यथास्थिति, केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार के अधीन उसकी पदीय हैसियत में कार्यरत कोई व्यक्ति सम्मिलित है;
(ग) “अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों” के वही अर्थ है जो संविधान के अनुच्छेद 366 के बैंक (24) और खंड (25) में है;
(घ) “विशेष न्यायालय” से धारा 14 में विशेष न्यायालय के रूप में विनिर्दिष्ट कोई सेशन न्यायालय अभिप्रेत है;
(ङ) “विशेष लोक अभियोजक” से विशेष लोक अभियोजक के रूप में विनिर्दिष्ट लोक अभियोजक या धारा 15 में निर्दिष्ट अधिवक्ता अभिप्रेत है;
(ड.क) “अनुसूची” से इस अधिनियम से उपाबध्य अनुसूची अभिप्रेत है;
(ड.ख) “सामाजिक बहिष्कार” से कोई रुढ़िगत सेवा अन्य व्यक्ति को देने के लिए या उससे प्राप्त करने के लिए या ऐसे सामाजिक संबंधों से प्रतिविरत रहने के लिए, जो अन्य व्यक्ति से बनाए रखें जाएं या अन्य व्यक्तियों से उसको अलग करने के लिए किसी व्यक्ति को अनुज्ञात करने से इंकार करना अभिप्रेत है;
(ड.ग) “पीड़ित” से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जो धारा 2 की उपधारा (1), के खंड (ग) के अधीन ‘अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति’की परिभाषा के भीतर आता है तथा जो इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के होने के परिणामस्वरूप शारीरिक, मानसिक मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक या धनीय हानि या उसकी संपत्ति को हानि वहन या अनुभव करता है और जिसके अंतर्गत उसके नातेदार, विधिक संरक्षक और विधिक वारिस भी है;
(ड.घ) “साक्षी” से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो इस अधिनियम के अधीन अपराध से अंतर्वलित किसी अपराध के अन्वेषण, जांच या विचारण के प्रयोजन के लिए तथ्यों और परिस्थितियों से परिचित है या कोई जानकारी रखता है या आवश्यक ज्ञान रखता है और जो ऐसे मामले के अन्वेषण, जांच या विचारण के दौरान जानकारी देने या कथन करने या कोई दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए अपेक्षित हैं या अपेक्षित हो सकेगा और जिसमें ऐसे अपराध का पीड़ित सम्मिलित है;
(च) उन शब्दों और पदों के, जो इस अधिनियम में प्रयुक्त हैं किंतु परिभाषित नहीं है और, यथास्थिति, भारतीय दंड संहिता, 1860 (1860 का 45), भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872(1872 का 1) या दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में परिभाषित है, वही अर्थ होना समझा जाएगा जो उन अधिनियमितियों में है।
(2) इस अधिनियम में किसी अधिनियमिति या उसके किसी उपबंध के प्रति किसी निर्देश का अर्थ, किसी ऐसे क्षेत्र के संबंध में जिसमें ऐसी अधिनियमिति या ऐसा उपबंध प्रवृत्त नहीं है, यह लगाया जाएगा कि वह उस क्षेत्र में प्रवृत्त तत्स्थानी विधि, यदि कोई हो, के प्रति निर्देश है।
Sc/St एक्ट में अपराध क्या है? - What is crime in sc/st act?
यह अधिनियम उस व्यक्ति पर लागू होता हैं जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं हैं और इस वर्ग के सदस्यों पर अत्याचार का अपराध करता है़। अधिनियम की धारा 3 (1) के अनुसार जो कोई भी यदि वह अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं हैं और इस वर्ग के सदस्यों पर निम्नलिखित अत्याचार का अपराध करता है तो कानूनन वह दण्डनीय अपराध माना जायेगा-
- 1. अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को जबरन अखाद्य या घृणाजनक पदार्थ खिलाना या पिलाना।
- 2. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को शारीरिक चोट पहुंचाना या उनके घर के आस-पास या परिवार में उन्हें अपमानित करने या क्षुब्ध करने की नीयत से कूड़ा-करकट, मल या मृत पशु का शव फेंक देना।
- 3. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के शरीर से बलपूर्वक कपड़ा उतारना या उसे नंगा करके या उसके चेहरें पर पेंट पोत कर सार्वजनिक रूप में घुमाना या इसी प्रकार का कोई ऐसा कार्य करना जो मानव के सम्मान के विरूद्ध हो।
- 4. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के भूमि पर से गैर कानूनी-ढंग से खेती काट लेना, खेती जोत लेना या उस भूमि पर कब्जा कर लेना।
- 5. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को गैर कानूनी-ढंग से उनकें भूमि से बेदखल कर देना (कब्जा कर लेना) या उनके अधिकार क्षेत्र की सम्पत्ति के उपभोग में हस्तक्षेप करना।
- 6. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सदस्य को भीख मांगनें के लिए मजबूर करना या उन्हें बुंधुआ मजदूर के रूप में रहने को विवश करना या फुसलाना।
- 7. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सदस्य को वोट (मतदान) नहीं देने देना या किसी खास उम्मीदवार को मतदान के लियें मजबूर करना।
- 8. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के विरूद्ध झूठा, परेशान करने की नीयत से इसे पूर्ण अपराधिक या अन्य कानूनी आरोप लगा कर फंसाना या कारवाई करना।
- 9. किसी लोक सेवक (सरकारी कर्मचारी/ अधिकारी) को कोई झूठा या तुच्छ सूचना अथवा जानकारी देना और उसके विरूद्ध अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को क्षति पहुंचाने या क्षुब्ध करने के लियें ऐसें लोक सेवक उसकी विधि पूर्ण शक्ति का प्रयोग करना।
- 10. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को जानबूझकर जनता की नजर में जलील कर अपमानित करना, डराना।
- 11. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी महिला सदस्य को अनादार करना या उन्हें अपमानित करने की नीयत से शील भंग करने के लिए बल का प्रयोग करना।
- 12. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी महिला का उसके इच्छा के विरूद्ध या बलपूर्वक यौन शोषण करना।
- 13. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सदस्यों द्वारा उपयोग में लायें जाने वालें जलाशय या जल स्त्रोतों का गंदा कर देना अथवा अनुपयोगी बना देना।
- 14. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को किसी सार्वजनिक स्थानों पर जाने से रोकना, रूढ़ीजन्य अधिकारों से वंचित करना या ऐसे स्थान पर जानें से रोकना जहां वह जा सकता हैं।
- 15. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को अपना मकान अथवा निवास स्थान छोड़नें पर मजबूर करना या करवाना।
Sc/St एक्ट में उपरोक्त अपराध का दण्ड क्या है ? - What is the punishment for the above crime in Sc/St Act?
ऊपर वर्णित अत्याचार के अपराधों के लियें दोषी व्यक्ति को छः माह से पाँच साल तक की सजा, अर्थदण्ड (फाइन) के साथ प्रावधान हैं। क्रूरतापूर्ण हत्या के अपराध के लिए मृत्युदण्ड की सजा हैं। अधिनियम की धारा 3 (2) के अनुसार कोई भी व्यक्ति जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं हैं और-
यदि वह अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य के खिलाफ झूठा गवाही देता है या गढ़ता हैं जिसका आशय किसी ऐसे अपराध में फँसाना हैं जिसकी सजा मृत्युदंड या आजीवन कारावास जुर्मानें सहित है। और इस झूठें गढ़ें हुयें गवाही के कारण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सदस्य को फाँसी की सजा दी जाती हैं|तो ऐसी झूठी गवाही देने वालें मृत्युदंड के भागी होंगें।
यदि वह मिथ्या साक्ष्य के आधार पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य को किसी ऐसे अपराध के लियें दोष सिद्ध कराता हैं जिसमें सजा सात वर्ष या उससें अधिक है तो वह जुर्माना सहित सात वर्ष की सजा से दण्डनीय होगा।
आग अथवा किसी विस्फोटक पदार्थ द्वारा किसी ऐसे मकान को नष्ट करता हैं जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य द्वारा साधारणतः पूजा के स्थान के रूप में या मानव आवास के स्थान के रूप में या सम्पत्ति की अभिरक्षा के लिए किसी स्थान के रूप में उपयोग किया जाता हैं, वह आजीवन कारावास के साथ जुर्मानें से दण्डनीय होगा।
लोक सेवक होते हुयें इस धारा के अधीन कोई अपराध करेगा, वह एक वर्ष से लेकर इस अपराध के लिए उपबन्धित दण्ड से दण्डनीय होगा। अधिनियम की धारा 4 (कर्तव्यों की उपेक्षा के दंड) के अनुसार कोई भी सरकारी कर्मचारी/अधिकारी जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं हैं, अगर वह जानबूझ कर इस अधिनियम के पालन करनें में लापरवाही करता हैं तो वह दण्ड का भागी होगा। उसे छः माह से एक साल तक की सजा दी जा सकती हैं।
दंड के साथ-साथ, इस अपराध की रोकथाम के लिए संबंधित संस्थाओं द्वारा संचार की गई जागरूकता अभियान और संबंधित शिक्षा पाठ्यक्रमों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सम्मान को सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त उपाय अधिकारिक स्तर पर लिए जाने चाहिए।
अंततः, यह महत्वपूर्ण है कि हम समाज के हर वर्ग के लोगों को समान अधिकारों और समान विकास के अवसरों का लाभ उन्हें प्रदान करें और जनसामान्य को इस अपराध के विरुद्ध संघर्ष करने में सहायता करने के लिए उन्हें प्रेरित करें।
Sc/St एक्ट में जमानत की प्रक्रिया - Process of bail in sc st Act.
SC/ST एक्ट में जमानत की प्रक्रिया अन्य अपराधों की जमानत की प्रक्रिया से थोड़ी अलग होती है। निम्नलिखित तरीके के माध्यम से SC/ST एक्ट में जमानत की प्रक्रिया होती है:
जमानत की अर्जी: जब कोई व्यक्ति गिरफ्तार किया जाता है, तो उसे उसके वकील द्वारा जमानत की अर्जी दर्ज करनी होती है। इसमें उसकी पहचान पत्रिका, पता, जाति, रोकथाम या बचाव की वजह और दावा शामिल होता है कि उसने जिस अपराध के लिए गिरफ्तारी की है, उसमें उसकी निर्दोषता हो सकती है।
Sc/St एक्ट के तहत अपराध गैर-जमानती हैं, जब तक कि मजिस्ट्रेट को जमानत के लिए आवेदन नहीं किया जाता है। व्यक्ति बेल के लिए एट्रोसिटी एक्ट के प्रावधानों के तहत किए गए किसी भी अपराध के केस में कोर्ट के सामने जमानत लेने के लिए एप्लीकेशन सबमिट कर सकता है। कोर्ट अपराध पर विचार करेगी। अगर कोर्ट द्वारा जमानत खारिज कर दी जाती है, तो आरोपी को हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का अधिकार है।
हालही के संशोधन के अनुसार, आरोपी को नियमित जमानत के लिए ‘अत्याचार निवारण अधिनियम’ की धारा 14 (ए) 2 के तहत हाई कोर्ट में आपराधिक अपील फाइल करनी होती है। आप लीड इंडिया के एडवोकेट्स से सलाह ले सकते है, जो इस सिचुएशन में आपके केस के लिए जमानत आवेदन तैयार करके उसे फाइल करेंगे।
हितेश वर्मा v/s उत्तराखंड राज्य 2020 के केस में 3 जजों की बेंच ने कहा कि जब तक एससी-एसटी समुदाय के सदस्य को अपमानित करने का एक दुर्भावनापूर्ण इरादा साबित नहीं होता, तब तक एट्रोसिटी एक्ट के तहत किसी कार्य को अपराध नहीं माना जा सकता है। इस प्रकार इस केस में न्यायालय द्वारा यह माना गया कि सदस्य के खिलाफ कोई अपराध नहीं माना गया है, क्योंकि अपमान चार दीवारों के अंदर हुआ है और इसे दंडनीय अपराध मानने के लिए यह पर्याप्त नहीं है। ऐसे ही 2021 के केस में, जब छावनी पुलिस ने एट्रोसिटी एक्ट के तहत सेना के दो जवानों को गिरफ्तार किया, तो उन्हें कुछ दिनों में जमानत पर रिहा कर दिया गया।
अन्य प्रावधान - Other provisions.
धारा-14 (विशेष न्यायालय की व्यवस्था) के अन्तर्गत इस अधिनियम के तहत चल रहे मामले को तेजी से ट्रायल (विचारण) के लियें विशेष न्यायालय की स्थापना का प्रावधान किया गया है। इससे फैसलें में विलम्ब नहीं होता हैं और पीड़ित को जल्द ही न्याय मिल जाता हैं।धारा-15 के अनुसार इस अधिनियम के अधीन विशेष न्यायालय में चल रहें मामलें को तेजी से संचालन के लिये एक अनुभवी लोक अभियोजक (सरकारी वकील) नियुक्त करने का प्रावधान हैं। धारा-17 के तहत इस अधिनियम के अधीन मामलें से संबंधित जाँच पड़ताल डी.एस.पी. स्तर का ही कोई अधिकारी करेगा। कार्यवाही करने के लियें पर्याप्त आधार होने पर वह उस क्षेत्र को अत्याचार ग्रस्त घोषित कर सकेगा तथा शांति और सदाचार बनायें रखने के लिए सभी आवश्यक उपाय करेगा तथा निवारक कार्यवाही कर सकेगा। धारा-18 के तहत इस अधिनियम के तहत अपराध करने वालें अभियुक्तों को जमानत नहीं होगी।
धारा-21 (1) में कहा गया हैं कि इस अधिनियम के प्रभावी ढंग से कार्यान्वयन के लिये राज्य सरकार आवश्यक उपाय करेगी। (2) (क) के अनुसार पीड़ित व्यक्ति के लियें पर्याप्त सुविधा एवं कानूनी सहायता की व्यवस्था की गई हैं। (ख) इस अधिनियम के अधीन अपराध के जाँच पड़ताल और ट्रायल (विचारण) के दौरान गवाहों एवं पीड़ित व्यक्ति के यात्रा भत्ता और भरण-पोषण के व्यय की व्यवस्था की गई हैं। (ग) के अन्तर्गत सरकार पीड़ित व्यक्ति के लियें आर्थिक सहायता एवं सामाजिक पुनर्वास की व्यवस्था करेगी।
(घ) के अनुसार ऐसे क्षेत्र की पहचान करना तथा उसके लियें समुचित उपाय करना जहाँ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर अत्यधिक अत्याचार होते हैं। अधिनियम की धारा 21 (3) के अनुसार केन्द्र सरकार राज्य सरकार द्वारा अधिनियम से संबंधित उठायें गयें कदमों एवं कियें गयें उपायों में समन्यव के लियें आवश्यकतानुसार सहायता करेगी। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1995 यह नियम अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 का ही विस्तार हैं। अधिनियम के अधीन दर्ज मामलें को और अधिक प्रभावी बनानें तथा पीड़ित व्यक्ति को त्वरित न्याय एवं मुआवजा दिलाने के लियें अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण नियम 1995 पारित किया गया हैं।
धारा 5 (1) (थाना में थाना प्रभारी को सूचना संबंधी)- इसके अनुसार अधिनियम के तहत किये गयें अपराध के लियें प्रत्येंक सूचना थाना प्रभारी को दियें जानें का प्रावधान हैं। यदि सूचना मौखिक रूप से दी जाती हैं तो थाना प्रभारी उसे लिखित में दर्ज करेंगें। लिखित बयान को पढ़कर सुनायेंगें तथा उस पर पीड़ित व्यक्ति का हस्ताक्षर भी लेंगें। थाना प्रभारी मामलें को थाना के रिकार्ड में पंजीकृत कर लेगें। (2) उपनियम के तहत दर्ज एफ.आई. आर. की एक काॅपी पीड़ित को निःशुल्क दिया जायेगा।(3) अगर थाना प्रभारी एफ.आई. आर. लेने से इन्कार करतें हैं तो पीड़ित व्यक्ति इसे रजिस्ट्री द्वारा एस. पी. को भेज सकेगा। एस.पी. स्वंय अथवा डी. एस.पी. द्वारा मामलें की जाँच पड़ताल करा कर थाना प्रभारी को एफ.आई. आर.दर्ज करने का आदेश देंगें।
धारा-6 के अनुसार डी.एस.पी. स्तर का पुलिस अधिकारी अत्याचार के अपराध की घटना की सूचना मिलतें ही घटना स्थल का निरीक्षण करेगा तथा अत्याचार की गंभीरता और सम्पत्ति की क्षति से संबंधित रिर्पोट राज्य सरकार को सौंपेगा।
धारा-7 (1)-के तहत इस अधिनियम के तहत कियें गयें अपराध की जाँच डी.एस.पी. स्तर का पुलिस अधिकारी करेगा। जाँच हेतु डी.एस.पी. की नियुक्ति राज्य सरकार/डी.जी.पी. अथवा एस.पी. करेगा। नियुक्ति के समय पुलिस अधिकारी का अनुभव, योग्यता तथा न्याय के प्रति संवेदनशीलता का ध्यान रखा जायेगा। जाँच अधिकारी (डी.एस.पी.) शीर्ष प्राथमिकता के आधार पर घटना की जाँच कर तीस दिन के भीतर जाँच रिर्पोट एस.पी.को सौपेगा। इस रिर्पोट को एस.पी.तत्काल राज्य के डी.जी.पी. को अग्रसारित करेगें।
धारा-11 (1) में यह प्रावधान किया गया हैं कि मामलें की जाँच पड़ताल, ट्रायल (विचारण) एवं सुनवाई के समय पीड़ित व्यक्ति उसके गवाहों तथा परिवार के सदस्यों को जाँच स्थल अथवा न्यायालय जाने आने का खर्च दिया जायेगा। (2) जिला मजिस्ट्रेट/ एस.डी.एम. या कार्यपालक दंडाधिकारी अत्याचार से पीड़ित व्यक्ति और उसके गवाहों के लियें न्यायालय जानें अथवा जाँच अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत होने के लियें यातायात की व्यवस्था करेगा अथवा इसका लागत खर्च भुगतान करने की व्यवस्था करेगा।
धारा 12 (1) में कहा गया हैं कि जिला मजिस्ट्रेंट और एस.पी. अत्याचार के घटना स्थल की दौरा करेंगें तथा अत्याचार की घटना का पूर्ण ब्यौरा भी तैयार करेंगें।(3) एस.पी. घटना के मुआवजा करनें के बाद पीड़ित व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करने की व्यवस्था करेंगें तथा आवश्यकतानुसार उस क्षेत्र में पुलिस बल की नियुक्ति करेंगें।(4) के अनुसार डी.एम./एस.डी.एम. पीड़ित व्यक्ति तथा उसके परिवार के लियें तत्काल राहत राशि उपलब्ध करायेंगें साथ ही उचित मानवोचित सुविधा प्रदान करायेगें।
पीड़ित व्यक्ति को मुआवजा कितना मिलता है ? - How much compensation does the victim get?
अनुसूचित जाति के उत्पीड़ित व्यक्ति द्वारा एफ० आई० आर० दर्ज करते ही विभाग द्वारा प्रथम चरण में लाभार्थी को त्वरित आर्थिक सहायता पहुचाने का प्राविधान है सामान्यता अपराध सिद्व होने की स्थिति में उत्पीडित व्यक्ति को रू. 40000/- से रू. 500000/- तक आर्थिक सहायता दिये जाने का प्राविधान है।
निष्कर्ष - Conclusion.
ऊपर दिए गए तथ्यों के अनुसार, संशोधनों और केस कानून के आधार पर, यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि गिरफ्तारी के बाद अभियुक्त को जमानत दी जा सकती है या गिरफ्तारी से पहले अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकता है।
फिर भी, अधिनियम रीढ़ की हड्डी है जिसका उद्देश्य न केवल हाशिए पर रहने वाले समुदायों के खिलाफ हिंसा को रोकना है बल्कि उन्हें किसी भी अन्य उच्च वर्ग के नागरिक की तरह सम्मानित जीवन जीने के लिए सशक्त बनाना है। जहां तक इसके क्रियान्वयन का संबंध है, यह आज तक अपर्याप्त रहा है। लेकिन, कार्यपालिका को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके बाद नियमों को ठीक से लागू किया जाए।
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