दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि प्रथम दृष्टया किसी चेक पर केवल हस्ताक्षरकर्ता के हस्ताक्षर होना किसी व्यक्ति को निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट NI Act की धारा 138 के तहत अपराध का दोषी नहीं बनाता है।
यह देखते हुए कि अपराध उस चरण में शुरू होता है, जब बैंक द्वारा धन की कमी के कारण चेक का भुगतान नहीं किया गया है, न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी ने कहा,
“कंपनी के एक अधिकारी को दोषारोपित करने के लिए उसे कम से कम कंपनी के व्यापार और मामलों के लिए जिम्मेदार होना चाहिए और उस तारीख पर चेक के ऑनर के लिए जिम्मेदार होना चाहिए, जिस दिन चेक को बिना भुगतान लौटाया गया था।”
कोर्ट ने निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट NI Act की धारा 138 के तहत दर्ज एक शिकायत मामले में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा पारित 19 सितंबर, 2019 को सम्मन आदेश के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।
याचिकाकर्ता का मामला यह था कि वह 30 जुलाई, 2018 और 30 अगस्त, 2018 के चेक पर हस्ताक्षर करने वालों में से एक था।
प्रश्नचित चेक मेसर्स ऑर्टेल कम्यूनिकेशन लिमिटेड की ओर से जारी किया गया था, जहां याचिकाकर्ता मुख्य प्रौद्योगिकी अधिकारी के रूप में कार्यरत था। उस पद पर ही रहते हुए उसने चेक पर हस्ताक्षर किया था, हालांकि वह 6 जनवरी, 2018 से सेवानिवृत्त हो गया।
याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि चेक नकदीकरण के लिए प्रस्तुत किए गए थे और 25 अक्टूबर, 2018 को अपर्याप्त धन के कारण वापस भेज दिए गए थे।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने ये भी बताया की उस तारीख को किसी भी तरह से कंपनी के व्यवसाय या मामलों से जुड़ा नहीं था, क्योंकि वह नौ महीने से ज्यादा समय पहले सेवानिवृत्त हो चुका था।
याचिका पर नोटिस जारी करते हुए, अदालत ने कहा कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के एक मात्र अवलोकन से पता चलता है कि अपराध की उत्पत्ति बैंक द्वारा चेक की बिना भुगतान “वापसी” है, जिसे खाते में धन की अपर्याप्तता Insufficient Fund कारण लौटा दिया गया।
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